SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 321
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३११ ) कलश-भक्ति में निमग्न भक्त कलश पर हाथ पोटने लगता है। कलश वस्तुत: ताल वादय है। यश अभिवन के लिए कलश का प्रयोग जैन-पूजाकाम्य में हआ है। उन्नीसवीं शती को भी शांतिनाय जिनपूजा' नामक पूजाकृति में कलश का प्रयोग द्रष्टव्य है।' कंसाल-कंसाल ताल बादय है। यह कांसा का बना हुआ होता है, इसे हाथों से बनाते हैं। जन-हिन्दी-पूना-काध्य में उन्नीसवीं शती के कवि कमलनयन ने कंसाल वाव्य का व्ययहार किया है। खंजरी-खंजरी खाल वाच्य है। खंजरी या खंजड़ी इफली की मांति आकार में उससे छोटा एक वाव्य है। खंजरी एक ओर बकरी के चमड़े से मड़ी होती है । भिक्ष क-जन इसका उपयोग अधिक करते हैं। चंग की भांति इसे बजाया जाता है। जन-हिन्दी-पूजा-काव्य में उन्नीसवीं शती में खंजरी वाद्य 'श्री पंच. कल्याणक-पूजा-पाठ' नामक कृति में व्यंजित है।' घंटा-घंटा ताल वाय है। घंटा कांसे का गोल पट्ट जिसे मुंगरी या हाय से पीटकर पूजन में और समय सूचना के लिए बजाते हैं। कांसे का लंगरवार बाजा जो लंगर हिलाने से बजता है, घंटा कहलाता है। इस का प्रयोग प्रायः मंदिरों में होता है। जैन-हिन्दी-पूजा-काव्य में घंटा का प्रचुर प्रयोग उन्नीसवीं शती में हुआ है। कविवर बावन द्वारा विरचित 'श्री शांतिनाथ जिमपूजा" 'श्री महावीर १. अब घ घ घ घ घ धुनि होत घोर । भ भ भ भ भ म ध ध ध ध कलश शोर ।। -~~-श्रीशांतिनाजिनपूजा, वृदावन, राजेशनित्यपूजापाठसंग्रह, पृष्ठ ११५ । चन्द्रोपक चामर घंटा तोरन घने । पल्लरि ताल कंसाल करन उप सब बने ।। -श्री पंचकल्याणक पूजापाठ-कमलनयन, हस्तलिखित । ३. सांगीत गीत गावें सुर गधवं ताल देहिं भारी। बीन मृदंग मुहचंग खंजरी बात है सुखकारी ॥ -श्री पंचकल्याणक पूजापाठ, कमलनयन, हस्तलिखित । ४, तन नन नन नन नन तनन तान । धन धन नन घंटा करत ध्वान ॥ -श्री शांतिनाथ जिनपूषा, बावन, राजेगनित्यपूजापाठसंग्रह, पृष्ठ
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy