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________________ । २९४ ) भंगार और सलग्न वातावरण में अपने प्रियतम का मुखमंडल भी देख बैन-हिन्दी-प्रजा-काव्य में अगरवीं शती के पूजाकवि बामतराय द्वारा प्रणीत 'श्री दशलक्षण धर्मपूजा' नामक पूजा में आरसी आभूषण निर्मल वर्शन के लिए प्रयुक्त है।' नपुर-पैर की अंगुलियों में स्त्रीपयोगी गहना नपुर है। इसे धरू भी कहते हैं। इस गहने को पहन कर नृत्य किया जाता है। 'कृष्ण-विवाणी' भोरा का तो यह प्रिय आभूषण था। जैन-हिन्दी-पूजा-काव्य में उन्नीसवीं शती के कवि वावन' और बोसवीं राती के कवि जवाहरबास' ने पूजा-रचनाओं में नूपुर का प्रयोग किया है। __ मुकुट-एक प्रसिद्ध शिरोभूषण जो प्रायः राजा आदि धारण किया करते हैं। पूजा काव्य में बीसवीं शती के पूजाकवि आशाराम ने 'श्रीसोनागिरि सिवक्षेत्र पूजा' नामक कृति में हार पर हारपाल अभ्यर्थनार्थ कुट लिए खड़ा हमा उल्लिखित है। हार-सोना-चांदी या मोतियों आदि की माला जिसे कंठ में पहना जाता है, हार कहलाता है। - १. करिये सरल तिहुँ जोग अपने, देख निरमल पारसी। मुख करे जैसा लखे तसा, कपट-प्रीति अंगारसी। -श्री दशलक्षण धर्मपूजा, धानतराय, जन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ ६४ । २. दम दम दम दम बाजत मृदंग। मन नन नन नन नन नूपुरंग ॥ -श्री शांतिनाजिनपूजा, बदावन, राजेशनित्यपूजापाठसंग्रह, पृष्ठ ३. श्री अथसमुच्चय लघुपूजा, जवाहरदास, बहजिनवाणीसंग्रह, पृष्ठ ४. जिन मंदिर की वेदी विशाल, दरवाजे तीनों बहु सुढाल । ता दरवाजे पर द्वारपाल, ने मुकुट खड़े अरु हापमाल ॥ -श्री सोनागिरि सिद्धक्षेत्र पूजा, आशाराम, जैनपूजा पाठसंग्रह, पृष्ठ
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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