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________________ ( २६१) (या विधि पापों कल्यान बोय ) (मी तीस चौबीसी पूना, रविमल), (मेरे महबेये में इनसे), (श्री देवशास्त्र गुरुपूजा, युगल किशोर जैन 'युगल' )। कारक और विभक्तियां विवेच्य काव्य में नीचे लिखें अनुसार कारक बिहनों मोर वित्तियों के प्रयोग मिलते हैं - फर्ताकारक-(क्रिया का करने वाला ) ने शताग्जिाम १८. तीर्थ कर की धुनि, गगधर ने सुनि। (श्री सरस्वती पूजा, यानतराय) १६. जन्माभिषेक कियो उनने। (श्री नेमिनाप जिनपूजा, मनरंगलाल ) २०. समझाया मेंने उजियारा । (श्री देवशास्त्र गुरुपूजा, युगल किशोर जैन 'युगल' ) कर्मकारक-(जिस पर क्रिया का प्रभाव पड़े) को १८. ताको जस कहिये। (श्री निर्वानक्षत्र पूजा, यानतराय ) १६. माधवी द्वादश को जन्मे । (श्री शीतलनाथ जिनपूजा, मनरंगलाल) २०. क्षणभर निज रस को पी चेतन, मिथ्या मल को धो देता है। (श्री देवशास्त्र गुरुपूजा, युगलकिशोर जैन 'युगल') करणकारक-(जिससे क्रिया की जाय ) ते, सो, से, के द्वारा १८. श्री जिनके परसाव ते, सुखी रहे सब जीब। (श्री देवशास्त्र गुस्पूना, यानतराय) १६. बो पर पड़ावे मन बबन सो निधार से बर हाल । (बी नेमिनाथ जिनपूजा, मनरंगलाल) २०. नेवल रबि-किरणों से जिसका सम्पूर्ण प्रकाशित है अन्तर । (श्री देवशास्त्र रुपूजा, युगल किशोरन 'युमल,) सम्प्रदायकारक-(जिसके लिए किया की भाव) को, के लिए
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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