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________________ ( स० ) प्रत्येक सती में इसी प्रकार के और भी अनेक शब्दों का प्रयोग हवा है जिनका मूल उत्स संस्कृत में है किन्तु वे घिस घिस कर अपने प्रकृत स्वरूप पर्याप्त निम्न हो गए हैं। पूजा-काव्य में शुद्ध संस्कृत के शब्दों का व्यवहार भी उल्लेखनीय है, यथासंस्कृत शब्द पूजा पक्ति अक्षत अमत अनूप निहार' भति अति धई तंदुल तंबुल धवल सुगंध यावृत्य मावृत्यकरया षट् आवश्यकाल जो सा पोग्श हमूह पोग्श कारन उन्नीसवों शताबि पद जम्मत रज अध पद अब १ श्री चारित्र पूजा, द्यानतराय, संग्रहीत ग्रंप-राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह, राजेन्द्र मैटिल वक्स, हरिनगर, अलीगढ़, १९७६, पृष्ठ १९५ । २. श्री सोलह कारण पूजा, संग्रहीत प्रथ - राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह, राजेन्द्र मैटिल वर्क्स, हरिनगर, भलीगढ़, १६७६, पृष्ठ १७७ । ३. श्री सोलह कारण पूजा, धानतराय, संग्रहीत प्रथ-राजेश नित्य पूजा पाठ संग्रह, राजेन्द्र मैटिल बर्स, हरिनगर, अलीगढ़, १६७६, पृष्ठ १७५ । ४. श्री सोलहकारण पूजा, द्यानतराय, सगृहीत मंच-राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह, राजेन्द्र मैटिल वस', हरिनगर, अलीगढ़, १६७६, पृष्ठ १७६ । ५. श्री सोलहकारण पूजा, दयानतराय, संग्रहीत ग्रंथ-राजेश नित्य पूजा पाठ संग्रह, राजेन्द्र मैटिल बस, हरिनगर, अलीगढ़, १९७६, पृष्ठ १७७ । ६. श्री सोलहकारण पूजा, दयानतराय, संगृहीत मंच-राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह, राजेन्द्र मैटिम वर्क्स, हरिनगर, मलीगढ़, १९७६, पृष्ठ १७४ । ७. श्री महावीर स्वामी पूषा, बन्दावन, संगृहीत ध-राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह, राजेन्द्र मैटिल वस, हरिनगर, अलीगढ़, .१९७६, पृष्ठ १३४ ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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