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________________ काव्य का अस्तित्व भाव-भाषा तथा अभिव्यक्ति पर निर्भर करता है। उत्तम काव्य के लिए अभिव्यक्ति का प्रमुख उपकरण भाषा का सम्यक शान होना आवश्यक है । शब्द और उससे उत्पन्न होने वाले ध्वनि-विज्ञान का बोध जितना भी अधिक होगा अभिव्यक्ति उतनी ही सशक्त और सप्राण होगी। सुन्दर शब्दयोजना सफल काव्याभिव्यक्ति के लिए आवश्यक उपकरण है । अनुपयुक्त शब्दावलि से काव्य को कमनीयता खंडित हो जाती है जबकि उपयुक्त शब्दों का प्रयोग उत्तम काव्य का सृजन करते हैं। पूजा कवियों की भाषा अपने समय की समस्त भाषाओं, विभाषामो और बोलियों के मधुर सम्मिश्रण से प्रभावित रही है। पूजा रचयिताओं ने अपनी अभिव्यक्ति में व्याकरणिक नियमों और साहित्य के शुद्ध रूप को ग्रहण करने की अपेक्षा उसको प्रषणीयता को अधिक अपनाया है। पूजाकाव्य में अनेक हिन्धोतर गमों का प्रयोग हुआ है। तत्सम शम्बावलि की भांति पूजाकाव्य की भाषा में समय शब्दों का प्रचर प्रयोग परिलक्षित है। यहां हम इन कवियों की भाषा पर संक्षेप में अध्ययन करेंगे । यथाअठारहवीं शती तभव शम्ब ( प्रयुक्त ) संस्कृत शब्द पूजा पवित छय क्षय दीपक बोति तिमर छयकार' छिन सब को छिन में जीत' छोरोवधि क्षीरोधि छोरोवधि गंगा विमल तरंगा' १. श्री सोलहकारण पूजा, दद्यानतराय. सगृहीत अंध-राजेश नित्य पूजा. संग्रह, राजेन्द्र मैटिल वर्स, हरिनगर, बलीयत, १९७६, पृष्ठ १५५ । २. श्री बीस तीर्थ कर पूजा, यामतराय, संगृहीत ग्रंथ, राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह, राजेन्द्र मैटिल बर्स, हरिनगर, मलीगढ़, १९७६, पृष्ठ ५६ । ३. श्री सरस्वती पूजा, यानतराम, संगृहीतग्रंथ-राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह, राजेन्द्र मैटिस वार्स, हरिनगर, अलीगढ़, १६७६, पृष्ठ ३७५ । क्षण
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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