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________________ ( २१९ ) अक्षय पर की प्राप्ति के वर्ष में कामबाण के विध्वंस के मई में सुधारोग के विनाश के वर्ष में मोहाधिकार के विनाश के अर्थ में अष्टकर्म के विध्वंस के अर्थ में मोक्ष की प्राप्ति के अर्थ में इन प्रतीकों के मर्च-विज्ञान का कारण रहा है-दार्शनिक अभिप्राय । जैनधर्म में आठ कर्मों का कोतक चचित है। इन्हीं अष्टकर्मों को प्रतीक रूप में पूजाकाव्य कृतियों में कषियों द्वारा गृहीत किया गया है। ___अठारहवीं शती के जैन-हिन्दी-पूजा कवियों द्वारा भत्त्यात्मक मणिव्यक्ति को सरल तथा सरस बनाने के लिए लोक में प्रचलित प्रतीकों का सकलता पूर्वक प्रयोग हुमा है । अठारहवीं शती में प्रयुक्त प्रतीकात्मक शम्मावलि को निम्न फलक द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है, यथाप्रतीक शब्द प्रतीकार्य कोच अग ( संसार ) के अर्थ में • मोह, संशय, विद्यम के ममें १. अपभ्रंश वाड्मय में व्यवहृत पारिभाषिक शब्दावलि, आदित्य प्रपण्डिया 'दीति', महावीर प्रकाशन, अलीगंज (एटा), प्रथम संस्करण १६७७, पृष्ठ ३। २. जिस बिना नहिं जिनराज सीझे, तू रुल्यो जग कोष मे। -श्री दशलक्षण धर्मपूजा, द्यानतराय, संगृहीत ग्रंथ-राजेश नित्य पूजा ___ संग्रह, राजेन्द्र मैटिल वर्क्स, हरिनगर, अलीगढ़, १६७६, पृष्ठ १८२ । ३. दीपक प्रकाश उजास उज्ज्वल, तिमिरसेती नहिं डरों । संशय विमोह विभरम तम हर, जोर कर विनती करो ।। -श्री निर्वाण क्षेत्र पूजा, धानतराय, संगृहीतग्रंथ-राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह, राजेन्द्र मैटिल वसं, हरिनगर, अलीगढ़, १९७६, पृष्ठ ३७४ ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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