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________________ ( २२७ ) काव्य में उम्मीसवीं शती के रससिद्ध कवि मनरंगलाल ने अपनी पूजाकाव्य कृति 'श्री शीतलनाथ जिन पूजा' में अग्विणी वृत्त का प्रचुर प्रयोग किया है ।" पूजा काव्य के जयमाल प्रसंग में इस वृत्त के सफल प्रयोग द्वारा शान्तरस को धारा प्रवाहित हो उठी है । विवेच्य काव्य में इन विविध छंदों के सफल प्रयोग से अभिव्यंजनासौम्बर्य लयात्मकता तथा ध्वन्यात्मकता का अपूर्व सामंजस्य परिलक्षित है पूजाकाव्य में छन्दों के उपयोग वैविध्य के कारण आज भी भक्त-परम्परा नित्य उपासनाकाल में विभोर तथा तन्मय होकर पूजाकाव्य को मौखिक गाया और दुहराया जाता है । हिन्दी काव्याभिव्यक्ति में इन छंदों का प्रयोग विभिन्न संबधों भाव व्यापार की अभिव्यंजना में विविध रसनिरूपण के लिए हुआ है किन्तु जैन - हिन्दी-पूजा - काव्यकारों ने इन सभी छंदों का प्रयोग भवत्यात्मक प्रसंगों में शांतरस-निरूपण के लिए ही सफलतापूर्वक किया है । १. द्रोपदी चीर बाढ़ो तिहारी सही, देव जानी सबों में सुलज्जा रही । कुष्ठ राखो न श्री पाल को जो महा, अfor से काढ़ लीनों सिताबी तहाँ ॥ - श्री सीतलनाथ जिनपूजा, मनरंगलाल, संगृहीतग्रंथ - राजेश मित्य पूजापाठ संग्रह, राजेन्द्र मंटिल वर्क्स, हरिनगर, अलीगढ़, १६७६, पृष्ठ ६७ । }
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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