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________________ ( २१८ ) में यह छंद बोहे की भांति अधिक लोकप्रिय रहा है। यह सामान्यतः दोहे के साथ ही व्यवहत है। कथात्मक प्रसंगों में सोरठा के द्वारा कथा के नबीन सूत्रों का संकेत प्राप्त हुआ करता है। जैन कवियों की पूजा काव्य-कृतियों में यह छंद अठारहवीं शती से परिलक्षित है । अठारहवीं शती के कविवर द्यानतराय को 'श्री रत्नत्रयपूजा' नामक काव्यकृति में यह छन्द व्यवहत है।' उन्नीसवीं शती के कविवर मनरंगलाल', रामचन्द्र', कमलनयन और मल्लजी ने अपनी पूजाओं में इस छंद का भलीभांति प्रयोग किया है। बीसवीं शती के भविलाल और होराचंद की पूजा रचनाओं में इस पद का व्यवहार द्रष्टव्य है। शान्तरस के प्रकरण में अठारहवीं शती के धानतराय ने सोरठा छंद को बहुलतापूर्वक प्रयोग किया है। १. क्षीरोदधि उनहार, उज्ज्वल जल अति सोहना । जनमरोग निरवार, सम्यक् रत्नत्रय भजू। --श्री रत्नत्रय पूजा, धानतराय, मंगृहीतमथ-राजेश नित्यपूजापाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटिल वर्म, हरिनगर, अलीगढ, संस्करण १९६६, पृष्ठ १६१ । २. श्री नेमिनाथ जिनपूजा, मनरगलाल, सग्रहीत ग्रथ-ज्ञानपीठ पूजाजलि, प्रकाशक अयोध्या प्रसाद गोयलीय, मंत्री, भारतीय ज्ञानपीट, दुर्गाकुण्ड रोड, बनारस, सस्करण १६५७ ई०, पृष्ट ::५।। ३. श्री सम्मेदशिखर पूजा, रामचन्द्र, संगृहीत अथ- जैन पूजापाठ सग्रह, भाग चन्द्र पाटनी, नं० ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ १२५।। ४. श्री पंचकल्याणक पूजा पाठ, कमलनयन, हस्तलिखित । ५. श्री क्षमावाणी पूजा, मल्लजी, संगृहीत ग्रन्थ-ज्ञानपीठ पूजांजलि, अयोध्या प्रसाद गोयलीय, मंत्री, भारतीय ज्ञानपीठ, दुर्गाकुण्ड रोड, बनारस, संस्करण १६५७ ई०, पृष्ठ ४०२ । ६. श्री सिद्धपूजा भाषा, भविलालज, संग्रहीतमथ-राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह, राजेन्द्र मैटिल बस, अलीगढ़, सस्करण १६७६, पृष्ठ ७१ । ७. श्री चतुर्विशति तीर्थकर समुच्चय पूजा, हीराचन्द, संगृहीतग्रंथ-नित्य नियम विशेष पूजन संग्रह, सम्या व प्रकाशिका- पतासी बाई जैन, गया (बिहार), संस्करण २४८७, पृष्ठ ७१ ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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