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________________ ( २१.) सरती सरसी छंद मात्रिक समछंदों का एक भेद है।' जैन-हिन्दी-पूना-काव्य में सरसो छंद का व्यवहार उन्नीसवीं शती के कविवर वृंदावन की 'बी पद्मप्रभु बिनपूणा' नामक पूजाकाव्य कृति में हुआ है। बीसवीं शती के कविवर हीराचंद की 'श्री चतुर्विशति तीर्य कर समुच्चय पूजा' नामक पूना रचना में इस छन्द के अभिवर्शन होते हैं।' सरसी छन्द का प्रयोग शान्तरस के परिपाक में जैन पूजाओं में उल्लिखित है। सार___सार मात्रिक सम छंद का एक भेद है। जैन-हिन्दी-पूजा-काव्य में उन्नीसवीं शती के कविवर वदावन की 'श्री महावीर स्वामी पूजा नामक' पूजा रचना में इस छंद का व्यवहार हुआ है। १. हिन्दी साहित्य कोश, प्रथम भाग, सम्पा० धीरेन्द्र वर्मा आदि, प्रकाशक ज्ञानमण्डल लिमिटेड, बनारम, संस्क० स० २०१५, पृष्ठ ८१८ । २. गंगाजल अति प्रासुक लीनो सौरभ सकल मिलाय । - मन बच तन त्रय धार देत हो, जनम जरामृत जाय ।। -श्री पद्मप्रभु जिनपूजा, वृदावन, स गृहीत प्रथ- राजेश नित्य पूजा पाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटिल वर्स, हग्निगर, अलीगढ़, संस्क० १९७६ पृष्ठ ८२ । ३. अष्ट द्रव्य भर थाल में जी, लीनो अर्घ बनाय । पंचमगतिमोहि दोर्जे जी, पूजू अंग नमाय ॥ -श्री चतुर्विशति तीर्थकर समुच्चयपूजा, हीराचन्द, संगृहीतय-नित्य नियम विशेष पूजन संग्रह, सम्पा. व प्रकाशिका-ब पतासीबाई जैन, ' (बिहार), पृष्ठ ७३ । ४. हिन्दी साहित्य कोण, प्रथम भाग, सम्प.. धीरेन्द्र वर्मा आदि, प्रकाशक शानमण्डल लिमिटेड, बनारस, सस्करण सं० २०१५, पृष्ठ ८४१ । ५. जनम चेत सित तेरस के दिन, कुण्डलपुर कन-वरना। सुरगिरि सुरगुरु पूज रचायो, मैं पूजों भव-हरना ।। -श्री महावीर स्वामी पूजा, वृन्दावन, संग्रहीतग्रन्थ-राजेश नित्य पूजा पाठ संग्रह, राजेन्द्र मैटिल वर्क्स, हरिनगर, अलीगढ़, संस्करण १९७६, पृष्ठ १३५।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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