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________________ ( २०२ ) दीपचंद' और मुन्नालाल' ने अपनी पूजाकाव्य कृतियों में इस छन्द का प्रयोग किया है । जैम- हिन्दी- पूजा - काव्य में चौपाई का सर्वाधिक प्रयोग अठारहवीं शती के कविवर दयानतराय ने शांतरस के परिपाक के लिए किया है। परि arfreera का एक विशेष भेद पद्धरि है। अपभ्रंश के रससिद्ध कवि पुष्पवंस द्वारा रचित नख-शिख वर्णन में परि छंद का प्रयोग श्रृंगार रसानुभूति के लिए व्यवहुत है । " हिन्दी के आरम्भ में पद्धरि छंद वीर रसात्मक अभिव्यक्ति के लिए व्यवहृत है । भक्तिकाल में यही छंद भक्त्यात्मक प्रसंग में शान्त तथा श्रृंगार रसानुभूति के लिए हिन्दी कवियों द्वारा प्रयुक्त हुआ है । हिन्दी के जंन कवियों ने इस छंद का व्यवहार अधिकतर धार्मिक अभिव्यक्ति में किया है जहाँ मक्त्यात्मक और सिद्धात विषयक बातों की चर्चा हुई है। अठारहवीं शती के कविवर व्यानतराय ने 'श्री अन्य देवशास्त्र गुरु की भाषा पूजा' में इस छंद का सफलता पूर्वक व्यवहार किया है । * १. श्री बाहुबलि पूजा, दीपचंद संग्रह, सम्पा० व प्रकाशिका ब्र० पृष्ठ ६२ । संगृहीतग्रंथ - नित्य नियम विशेष पूजा पतासीबाई जैन, गया ( बिहार ) २. श्री खण्डगिरिक्षेत्र पूजा, मुन्नालाल, संगृहीतग्रंथ जैन पूजा पाठ संग्रह, भागचन्द्र पाटनी, नं ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ १५५ ३. हिन्दी साहित्य कोश, प्रथम भाग, सम्पा०-धीरेन्द्र वर्मा आदि, प्रकाशकज्ञानमंडल लिमिटेड बनारस, संस्क० सं० २०१५, पृष्ठ ४३७ । ४. जैन- हिन्दी-काव्य में छन्दोयोजना, आदित्य प्रचण्डिया 'दीति', प्रकाशकजैन शोध अकादमी, आगरा रोड, अलीगढ, १६७६, पृष्ठ १६ । ५. शुभ समवशरण शोभा अपार, शत इन्द्र नमत कर शीश धार । देवाधिदेव अरहंत देव, बंदी मन वच तन करि सू सेव ।। - श्री अथदेवशास्त्र गुरु की भाषा पूजा, दयानतराय, संगृहीतग्रंथ राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह, प्रकाशक - राजेन्द्र मेटिल वर्क्स, हरिनगर, अलीगढ़, संस्क० १६७६, पृष्ठ ३६ ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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