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________________ छन्दोयोजना छन्द काव्य की नैसर्गिक आवश्यकता है। छन्द और भाव का प्रगाड़ सम्बन्ध है। भाव को अधिक संप्रेषणीय बनाने की शक्ति छन्द में निहित है। छन्द कयिता और सामाजिक दोनों के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। छन्द को अवतारणा रचयिता के भावावेग को संयमित और नियंत्रित करके उसका परिष्कार करती है सो सामाजिक के व्यक्तित्व को कोमल और ससंस्कृत बना कर मंगल का सूत्रपात करती है । लयात्मक अभिव्यक्ति से पवि एफ को अभीप्सित आनंदोपलब्धि होती है, तो दूसरों को भी लयबद अभिव्यक्ति के श्रवण, उच्चारण सथा अर्थ-ग्रहण से लोकोतर आनंद की प्राप्ति होती है। काव्याभिव्यक्ति में बहमुखी उपयोगिताओं का सामंजस्य छन्द प्रयोग पर निर्भर करता है। हिन्दी काव्य-धारा में रसानुसार विविध प्रसंगों में छन्दों के प्रयोग में वैविध्य के दर्शन होते हैं। जहां तक जैन-हिन्दी-पूजा-काव्य में प्रयुक्त छन्दों के अध्ययन का प्रश्न है यहाँ उस पर संक्षेप में विचार करना हमारा मूलाभिप्रेत रहा है। जैन-हिन्दी-पूजा-काव्य में बत्ती: छन्दों का व्यवहार हुआ है। प्रयुक्त इन छन्दों को हम दो भागों में विभाजित कर सकते हैं, यथा १. मात्रिक छन्द २ णिक छन्द पूजाकाव्य में मात्रिक छन्दों की संख्या तेईस है जिसे लक्षण के आधार पर तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है यपा १. मात्रिक सम छन्द २. मात्रिक अर्व समछन्द ३. मात्रिक विषम छन्द - १. जैन-हिन्दी-काव्य में छन्दोयोजना, आदित्य प्रचण्डिया दौति, प्रकाशक-जैन शोध अकादमी, आगरा रोड, अलीगढ़, प्रथमसंस्करण सन १६७६, पृष्ठ १०॥
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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