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________________ (१६३ ) मोह उपमेव के लिए कमरा : सागर' और सिमिर नामक उपनाव का प्रयोन रूपक अलंकार में संदिग्ध रूप से किया है । कविवर मालजी त बी समावाणी पूना' में मुक्ति उपमेय के लिए श्रीफल नामक रूढ़िमुक्त उपमान उल्लिखित है । मन मुक्ति और मन उपमेय के लिए कमश : जाल', रमणी और सुमेरपर्वतनामक नवीन उपमान इस काल के पूजाकाव्य में वृष्टिगोबर होते हैं। ___ सबों शती की पूजा-काव्य-कृतियों में परम्परागत उपमानों के अतिरिक्त कतिपय नवीन उपमानों के साथ निरंगरूपकालंकार का व्यवहार परिलक्षित है। इस काल के पूजाप्रणेताओं ने भव, मोह और बान उपमेय के १. जय शान्तिनाथ चिदू पराज, भवसागर में अदभुत जहाज। -श्री शांतिनाथ जिनपूजा, वृदावन, संग्रहीतग्रंथ-राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटिल बर्स, हरिनगर, अलीगढ़, १९७६, पृष्ठ २. मम तिमिर मोह निरवार, यह गुन धातु हो। ... -श्री चन्द्रप्रमु जिनपूजा, बन्दावन, संगृहीतग्रंथ-मानपीठ पूजांजलि, अयोध्या प्रसाद गोयलीय, मंत्री, भारतीय ज्ञानपीठ, दुर्गाकुण्ड रोग, बनारस, १९५७, पृष्ठ ३३४।. ३. कह मल्ल सरधा करी, मुक्तिबोफल होय. -श्री' अमावाणी पूजा मल्लजो, सग्रहीतग्रंथ-जौनपीक प्रांजलि अयोध्या प्रसाद गोयलीय, मंत्री, भारतीय ज्ञानपीठ, दुर्गाकुण्ड रोड, बनारस, १६५७, पृष्ठ ४०७ । ४. श्री कुपदयाल जग-रिजाल.हन भव-जाल युगमाल। .... -श्री पुनीष जिनपूजा, बसतावररल, सहतिय-मानपीठ पूजांजलि, अयोध्याप्रसाद गोयलीय. मंत्री भारतीय ज्ञानपीठ, दुर्गाकुण्ड रोड, बनारस, १६५७, पृष्ठ ५४२ ॥ ५. पाय जरी मरमादि नाधिकार मुक्ति रमनि भरतार। . -श्री पवे कल्याणक पूजापाठ, कमलनयन, हस्तलिखित । ६. जय तृषा परोषह करत जेर । कह रब चलत नहिं मन सुमेर।। -श्री सप्तबिपूजी, मनरमलाल, संग्रहीतबंध-रोप नित्य पूजा पाठ संग्रह, गजेन्द्र मेटिल बस, हरिनगर, अलीगढ़, १९६६, पृष्ठ
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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