SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ को संज्ञा प्रदान की गई है। परमेष्ठी के उपदेश उनका चिन्तबन मोक्षमार्ग का प्रदायक है।' जनवर्शन में परमेष्ठी पाँच प्रकार के कहे गए हैं यथा १. अहंन्त २. सिड ३. आचार्य ४. उपाध्याय ५. साधु अरहंत-'अहं पूजयामि' धातु में अर्हन्त शब्द बनता है । अहं से 'अर्थ' प्रत्यय करने पर अर्हत शब्द निष्पन्न हुआ। अर्हन्त पूज्य अर्थ में व्यवहत है। जो गृह स्थापना त्यागकर मुनिधर्म अंगीकार कर, निज स्वभाव साधन द्वारा चार घाति कर्मों-ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी, मोहनीय तथा अन्तरायका भय करके अनंत चतुष्टय-अनंत दर्शन, अनन्त मान, अनन्स सुख, अनन्त वीर्य-रूप विराजमान हुये वे वस्तुतः अरहंत हैं। १. तिहि खणि चवई जीवघो सेठिहउआराहउ निरू परमेठि । -जिनदस चरित्र, कविराजसिंह, माताप्रसाद गुप्त, एम. ए., डी. लिट. गेंदोलाल एडवोकेट, मंत्री, प्रबंधकारिणो कमटी, महावीर जी, वी० स० २४७५, छंदांक ५२, पृष्ठांक २३ ।। २. णमो अरिहताणं, णमोसिद्धाण, णमो आइरियाणं । णमो उवमायाणं, णमो लोय सव्व साहण ॥ -षट् खण्डागम ।। १,१११।८, जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग ३, जिनेन्द्र वर्णी, भारतीय ज्ञानपीठ, २०२६, पृष्ठांक २५८ । ३. अरहंति णमोकारं अरिहा पूजा सरुत्मा लोय । अरिहंति वंदण णमंसणाणि अरिहति पूय सवकारं । अरिहन्त सिध्द गमण अरहता तेण उच्चेति ।। -मूलाचार । ५०५-५६२ । जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग १, जिनेन्द्र वर्णी, भारतीय ज्ञानपीठ, संवत् २०२७, पृष्ठांक १४० । ४. जरवाहि जम्म मरणं चउगएगमणं च पुण्ण पावंच । हतूण दो सकम्मे हउ णाणमयं च अरहंतों। -बोधपाहड, अष्टपाइड, कुन्दकुन्दाचार्य, श्री पाटनी दिगम्बर जैन ग्रन्थ माला, स.२४७६, पृष्ठांक १२८. श्लोक संख्या ३० ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy