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________________ पूजाकार भबिलाल कृत 'भी सिरपूषा भावा' नामक रचना में '' शख व्यजित है।' धूप-धूप्यते अष्ट मर्माणां विनाशोभवति अनेन अतोधूमः / धूप नाम प्रमों से मिषित एक अन्य विशेष है जो मात्र सुगंधि के लिए अपवा देवपूजन के लिए जलाया जाता है। जनदर्शन में यह सुगन्धित ब्रम्य 'धूम' शब प्रतीक्षा है तथा पूजा-प्रसंग में अष्ट कर्मों का विनाशक' मानां गया है। जन-हिन्दी-पूजा में अशुभ पाप के संग से बचने के लिए समस्त कर्मरूपी (धन) को जलाने के लिए, प्रफुल्लित हवय से जिनेन्द्र भगवान की सुगन्धित धूप पूजा की जाती है ताकि शुध संबर रूप आत्मिक शक्ति का विकास हो जिससे कर्मबन्ध रुक जायें। जैन-हिन्दी-पूजा-काव्य में अठारहवीं शती के पूजाकार बानतराय प्रणीत भी रत्नत्रयपूजा नामक रचना में 'धूप' शब्द का उल्लेख मिलता है।' 1. दीपक की जोति जगाय, सिवन कों पूजों। कर भारति सन्मुख जाय निर्भय पद पूजों // ॐ ह्रीं णमोसिदाणं सिद्ध परमेष्ठिन मोहान्धकार विनाशाय दीपं निर्वामीति स्वाहा। --श्री सिवपूजाभाषा, भविलालजू, संग्रहीतमन्य-राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटिल बर्क्स, हरिनगर, अलीगढ़, सन् 1976 पृष्ठ 73 / :. सकल कर्म महेंधन वाहन, विमल संवर भाव सुधूपनं / अशुभ पुद्गल संग विवजितं, जिनपतेः पुरतोऽस्तु सुहषितः // -~जिनपूजा का महत्व, श्री मोहनलाल पारसान, सार्च शताब्दी स्मृति प्रय, प्रकाशक-श्री जैन श्वेताम्बर पंचायती मंदिर, 136, काटन स्ट्रीट, कलकत्ता-७, सन् 1665, पृष्ठ 55 / / 36 धूप सुवास विधार, चंदन अगर कपूर की। जनम रोग निखार, सम्यक रत्नत्रय पूजं / / ॐ ह्री अहिंसा व्रताय, सत्यवताय, ब्रह्मचर्यव्रताय, अपरिग्रह महाव्रताप मनोगुप्तये, वचन गुप्तये, कायगुप्तये, ईर्या समिति, भाषा समिति, एषणा . समिति, आदान निक्षेपण समिति, प्रतिष्ठापन समिति, त्रयोदशविध सम्यक् चारित्राय नमः धूपं निर्वपामीति स्वाहा / - श्री रत्नत्रयपूजा, धानतराय, संग्रहीत प्रथ-राजेश नित्यपूजाणठ संग्रह, राजेन्द्र मेटिल वस, हरिनगर, बसीमा, 1956, पृष्ठ 192 /
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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