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________________ 1 १२ ) हैसी प्रकार बीवात्मा भी रत्नत्रय' का पालन करताना अक्षत व्य का शेपण कर मावागमन से मुक्तिपा अक्षय पद की प्राप्ति का शुभ संकल्प प्राकृत प्रब "तिलोयपन्नति में ममत सम्म का प्रयोग नहीं करके लप का प्रयोग किया है तथा उसी भाषा का अम्मच 'बसविभावकाचार' में ममत शम्ब का व्यवहार इसी वर्ष व्यंजना में पंचित है।' न हिन्दी पूना में मात्मा को पूर्ण आनन्द का बिहार केन्द्र बनाने के लिए परम मंगल नावयुक्त जिनेन्द्र के सामने अक्षत से स्वस्तिक बनाकर भव्यखन चार पतियों (मनुष्य, देव, तिपंच, नरकगति) का बोध कराते हैं। स्वस्तिक के पर तीन बिन्दुओं से सम्यग् शंन बान चारित्र का, ऊपर चन्द्र से सिख गिता का तथा बिन्दु से सिडों का बोध कराते हैं। इस प्रकार सम्यग् पर्सन, मान, चारित्र ही भव्य जीव को मोक्ष प्राप्त कराते हैं। जैन वाममय मेमबत से पूजा करने वाले भक्त का मोक्ष प्राप्त हो जाने का कथन प्राप्त १. रलत्रय-सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्गः। तत्वाचे सूत्र, प्रथम अध्याय, प्रथम श्लोक, उमास्वामि । 2. तिलोयपणति २२४, जनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग ३, जिनेन्द्र वर्णी, भारतीय ज्ञानपीठ, २०२६, पृ० ७८ । ३. सुनंदि श्रावकाचार ३२१, जनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग ३, जिनेन्द्र वी, भारतीय ज्ञानपीठ, २०२६, पृष्ठ ७८ । ४. सकल मंगल केलि निकेतनं, परम मंगल भाव मयं जिनं । भवति भम्पजनाइति दर्शयन पधतुनाप पुरोऽमत स्वस्तिकं ॥ -बिनपूषा का महत्व, श्री मोहनलाल पारसान, सावं शताब्दी स्मृतिबंध प्रकाशक-साई शताब्दी महोत्सव समिति, १३६, काटन स्ट्रीट, कलकत्ता-७ सन् १९६५, पृष्ठ ५५ । ५. बसुनदि भावकाचार, २२१, जनेन्द्र सिवान्त कोश, भाग ३, जिनेन्द्र वर्णी, भारतीय ज्ञानपीठ, २०२६, पृष्ठ ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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