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________________ ८. छन्ना नग ५ (१ छमा सामग्री को अपने के लिए, तीन प्रा प्रक्षालन लिए तथा १ मा विकाको बोपर पोली ६. काष्ठ की चौकियां मम २, मालभारिखनेमाकार की सामान्य प्रवेरिका में प्रवेश करने की विधि बेनी, महाँ प्रभु-मतिमाएं प्रतिष्ठित है, में पूनम को जोश करते समय तीन बार-निःसहीः, निःसहीः, नि:सही:, का उच्चारण करना चाहिए । उच्चारण में मूल बात यह है कि यदि प्रम-वेरिका में किसी भी बोनि के जीवनम-व्यस्तर-देव मारि उपासना पहले से उपस्थित हों तो उनसे व्यर्ष में टकराहट न हो जाये और इस प्रयोचारण को सुनकर स्वयं बच जावें तथा राग-द्वेष अन्य समा व्यवधान हो जाये। पूजन सामग्री तथा उपकरणों को यथास्थान पर रखने केसचात् पूचक को प्रत्येक वेदी पर प्रभु बिम्ब के सम्मुख नतमस्तक हो कोबार मंत्र पढ़ना चाहिए। प्रतिमा-अभिषेक अभिषेक (जल से नहलाना) करने से पहिले श्वेत स्वच्छ तीन छम्मों को क्रमशः एक छन्ना प्रभु चरणों में बिछा देना चाहिये। एक छमा से कलरा होने से पूर्व प्रमु प्रतिमा को शुक प्रक्षालन कर लेना मावश्यक है। फलस होकर प्रतिमा रूप-स्वरूप का प्रक्षालन करना परमावश्यक है अन्त में दूसरे छन्ने से प्रतिमा का परिपोछन करना होता है ताकि प्रतिमा पर किसी भी बंश में जल कण शेष न रहें। इस प्रकार के शुभ काम के करते समय अत्यन्त प्रसन मुद्रा में निम्न मंगल पाठ करना आवश्यक है, पथापंचमंगल पाठ पणविवि पंच परमगुरु, गुरु जिन शासनो। सकल सिदि बातार तु विधन विनासनो॥ शार अरु गुरु भौतम सुमति प्रकाशनो। मंगल कर पज-संधहि पाप मानो।' १. पंचमंगलपाठ, कविवर रूपचंद, सहीतग्रंथ-बानपीठ, पूजा प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ, दुर्गाकुण रोड, बनारस-५, प्रथम संस्करण, १६.., पृष्ठ ६४।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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