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________________ पुजारी को मंदिर के लिए प्रस्थान करने से पूर्व अपने हरष में बिन पूर्णन की शुभ भाव स्थित करना होता है। पूजन का संकल्प लेकर मत द्वारा तीन बार 'ममीकार मंत्र का उच्चारण किया जाता है और तब उसका देवालय माना आवश्यक होता है। जिनमविर में प्रवेश करते हो पुनः तीन बार 'नमोकार मंत्र का उच्चारण करना आवश्यक होता है और यदि घर पर स्नान न किया हो तो उसे मंदिर स्थित स्नानागार में जाकर शरीर-गुखि करना अपेक्षित है। छने हुए स्वच्छ जल से स्नान कर भक्त को मंदिर जी में धुले हुए पवित्र वस्त्रों को धारण कर सामग्री कक्ष में प्रवेश करना चाहिए । पूजा-विधान सामान्य रूप से दो भागों में विभानित किया गया है, पमा (१) भावपूजा (२) द्रव्यपूजा भावपूजा भमण-साधुजनों अथवा जामवंत श्रेष्ठ बावक द्वारा ही सम्पन्न किया जाना होता है। सरागी धावक के लिए द्रव्य पूजा करना भावश्यक होता है । द्रव्य-पूजा करने के लिए पूजक को सामग्री संजोनी पड़ती है। सामग्री तैयार करने की विधि : ___ असत्, फलादि सामग्री को स्वच्छ जल में पखारना चाहिए । केशर तथा चंदन को घिसकर एक पात्र में एकत्र कर लेना चाहिए । माघे अमत् और नवेच (खोपड़े की टुकड़ियाँ या शकले) को केशर चंदन में रंग लेना आवश्यक है। यदि केशर का अभाव हो तो 'हरसिंगार' के पुष्प-पराग को चंदन के साथ घिस कर तैयार करना चाहिए। अष्टद्रष्य का स्वरूप-- अष्ट कर्मों को अय करने के लिए जिन पूजन में अष्ट व्यों का ही विधान है। इन सभी द्रव्यों को एक बड़े थाल में क्रमशः व्यवस्थित करना चाहिए, यथा (१) जल -स्वच्छ जल को जलपाश में भर लेना चाहिए। (२) चन्दन--स्वच्छ जल में चन्दन केशर मिलाकर एक पात्र में भर वि . (३) असत-श्वेत पसारे हुए पूर्ण चावलों को पाल में रखना चाहिए। (४) पुष्प -वेत पहारे हुए चावलों को बन्दन बार में बकर अमात् को रखना होता है।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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