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________________ ( ७ ) गया है । कालान्तर में शान्ति, निर्वान और मंजेश्वरी हो गई। इन सभी भक्तियों का हिन्दी जैन-पूजा काव्य में उपयोग हुआ है । मैं हिन्दी-पूजा काव्य मूलतः संस्कृत-प्राकृत भाषाओं से अनुमति रहा है। आरम्भ में भारतीय जैन समुदाय और समाज में इन्ही बाबी पाठ करने का प्रचलन रहा है। आज भी अनेक अनुष्ठानों पर 'संस्कृत तया प्राकृत पूजाओं का प्रयोग किया जाता है और इससे भक्ति at an परिणति मानी जाती है । पन्द्रहवीं शती से हिन्दी मावा में आचायो, 'सुनिय तथा मनोवियों द्वारा अनेक काव्य रचे गए हैं। अठारहवीं शती में हिन्दी में मक्त्वात्मक अभिव्यञ्जना के लिए पूजाकाव्य रूप को गृहीत किया गया । जैन आगम में वर्णित भक्ति भावना और उसके विविध अंगो को आधार मानकर जंन हिन्दी कवियों द्वारा प्रजोत विविध पूजा काव्य कृतियों में इनकी विशव व्याख्या हुई है। यहाँ विवेच्य काव्य में जेन भक्ति के विकासात्मक पक्ष पर संक्ष ेप मे अनुशीलन कर, भक्त्यात्मक विकास में इन कवियों योगवान परक अध्ययन करेंगे । जैन हिन्दी काव्य-पूजा का प्रारम्भ अठारहवीं शती से हो जाता है ।" इस शताब्दि के सशक्त पूजाकाव्य प्रणेता कविवर खानतराय द्वारा विविध विषयों पर अनेक पूजा काव्य रचे गए हैं। इनमें देव, शास्त्र और गुरु विषयक पूजा काव्य का महत्वपूर्ण स्थान है । क्योंकि इसमें एक साथ ही सिद्ध-भक्ति तीर्थङ्कर afia, तथा गुरु भक्ति तथा भक्ति का सम्यक् प्रतिपादन हो जाता है / १ - वंश भक्त्यादिसंग्रह, सिद्धसेन जैन गोयलीय, अखिल विश्व जैन मिशन, सलाल, साबरकांठा, गुजरात, प्रथम संस्करण, वी० नि० सं० २४८१, पृष्ठ ९६ से २२६ । २- जैन कवियों के हिन्दी काव्य का काव्यशास्त्रीय मूल्याङ्कन, डॉ० महेन्द्र सागर प्रचण्डिया, गागरा विश्वविद्यालय द्वारा १९७५ में स्वीकृत डी० सिं० उपाधि के लिए शोध प्रबन्ध, पृष्ठ ४४ । 1 ३- श्री देवशास्त्र गुरु पूजा, खानतराय, ज्ञानपीठ पूजांजलि, भारतीय ज्ञानपीठ पाणसी, प्रथम संस्करण १९५७, पृष्ठ १०६ ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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