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________________ ( ६१ ) गया है। उस भूमि की मन, वचन तथा काय से पूजा निर्वाण क्षेत्र की महिमा को नमस्कार कर निर्वाण जाता है । इस भक्ति के करने से समस्त पापों का सम्पत्ति की प्राप्ति होती है ।" चैत्यभक्ति चित् धातु में 'त्य' प्रत्यय होने से चैत्य शब्द का गठन हुआ है । चित् का अर्थ है fear | चिता पर बने स्मृति चिन्हों को वैश्य कहते हैं। जैन परम्परा अनादिकाल से चैत्य-वृक्षों को पूज्य मानती आ रही है। तीर्थकरों के समवशरण की संरचना में चैत्यवृक्षों की मुख्यतः रचना होती रही है। संत्य शब्द में आलय शब्द - सन्धि करने पर चैत्यालय शब्द की रचना हुई । इस प्रकार चैत्यालय वस्तुतः दो प्रकार के होते है- यथा - १. अकृत्रिम चंत्यालय, २. कृत्रिम चैत्यालय । ये चैत्यालय चारों प्रकार के देवों के भवन, प्रासादोंविमानों तथा स्थल स्थल पर अधोलोक, मध्यलोक तथा ऊर्ध्वलोक में स्थित करने का निवेश है ।" भक्ति को सम्पन्न किया शमन होता है और सुख १ - परम पूज्य चौबीस जिहँ जिहँ थानक शिव गए। सिद्धभूमि निश दीस, मन, वचतन पूजा करो || - श्री निर्वाण क्षेत्र पूजा, द्यानतराय, ज्ञान पीठ पूजाञ्जलि, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, प्रथम संस्करण सन् १९५७, पृष्ठ ३६७ । २- बीसो सिद्धभूमि जा ऊपर, शिखर सम्मेद महागिरि भूपर । एक बार बदे जो कोई, ताहि नरक- पशु गति नहि होई ॥ जो तीरथ जावै पाप मिटावे, ध्यावे गावे भगति करें । ताको जस कहिये, संपत्ति लहिये, गिरि के गुण को बुध उचरं ॥ -श्रो निर्वाण क्षेत्र पूजा, द्यानतराय, श्री जैन पूजापाठ संग्रह, भागचन्द्र पाटनी, ६२ नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता ७, पृष्ठ ६४ ॥ ३ -- जैन भक्ति काव्य की पृष्ठभूमि, डॉ० प्रेमसागर जैन, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, काशी, संस्करण १६६३, पृष्ठ १३५ । ४- तिलोयपण्णति, प्रथमभाग, ३/३६/३७, यतिवृषभ, सम्पादक डॉ० ए० एन० उपाध्ये एवं डॉ० हीरालाल जैन, जैन संस्कृति संरक्षक संघ, शोलापुर, प्रथम संस्करण, सन् १९४३, पृष्ठ ३७ । ५ - जैन भक्ति काव्य की पृष्ठभूमि, डॉ० प्रेमसागर जैन, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, काशी, प्रथम संस्करण १६६३, पृष्ठ १३७ ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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