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________________ इस प्रकार पंच परमेष्ठी परम पद सुखात्मा है। अरहन्त, सिख, बाचार्य, उपाध्याय और साधु मेरी आत्मा में ही प्रकट हो रहे हैं, मस्तु मात्मा ही मुझे शरण है।' पंच परमेष्ठी की भक्ति -आराधना करने से आध्यात्मिक, माधिमीतिक और आदि विक तीनों ही प्रकार की शक्तियों का शुभ चिन्तबन हो जाता है। इनके द्वारा मोह का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। जैन हिन्दी पूजा काव्य परम्परा में पंच परमेष्ठि के अनेक पूजा-काव्य प्रणीत हुए हैं। कविवर सच्चिदानंद कृत पूजा में पूजक मंगल कामना करता है कि मैं परमेष्ठि की पूजाकर, अपने कर्म-अरि बल का नाश कर सबूप पद प्राप्त कर पाऊँ । जीवन्मुक्त सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय मुनिराज की बंदना की गई है। फलस्वरूप सहज स्वमाव का विकास सम्भव है।' इस प्रकार पंच परमेष्ठि भक्ति के द्वारा पूजक को कर्मों का नाश रत्नत्रय की प्राप्ति तथा शुभ गति की प्राप्ति होती है। समाधिमरण को प्राप्त कर भगवान जिनेन्द्र देव के गुणों को सम्पत्ति प्राप्त करने की सम्भावना होती है। १. अरूहा सिद्धायरिया उज्झाया साहु पंच परमेट्ठी । ते विहु चिट्ठहि आधे तम्हा आदा हुमे सरण ।। -अष्टपाहुड, आचार्य कुन्दकुन्द, गाथा १०४, श्री पाटनी दि० जैन ग्रन्थमाला, मारोठ, मारवाड़। २ स्तम्भं दुर्गमन प्रति प्रयततो मोहस्य सम्मोहनम् । पापात्यच नमस्क्रियाक्षर मयी साराधना देवता ।। -~~~-धर्मध्यानदीपक, मागीलाल हुकुमचन्द पांड्या, कलकत्ता, प्रथम संस्करण, पृष्ठ २। ३. जल फल आठों द्रव्य मनोहर शिव सुख कारन में लाया । अरिदल नाशक तुव स्वरूप लख पद पूजूचित हुलसाया । जीवन्मुक्त सिद्ध आचारज उपाध्याय मुनिराज नमू। सहज स्वभाव विकास भयो अब आप आप में थाप रमू॥ -श्री पंचपरमेष्टि पूजा, सच्चिदानन्द, नित्यनियम विशेष पूजन संग्रह, ब्र० पतासीबाई, दि. जैन उदासीन आश्रम, ईसरी बाजार, हजारीबाग, पृष्ठ ३४ । ४. दशभक्त्यादि संग्रह, सिद्धसेन जैन गोयलीय, अखिल विश्व जैन मिशन, सलाल, साबरकाठा, गुजरात, प्रथम संस्करण वी०नि० सं० २४८१, पृष्ठ १६६।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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