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________________ रहती है।' आचार्य पूज्यपाल ने आचार्य को व्याख्या करते हुए कहा है कि उनमें स्वयं यतों का माचरण करने की भावना होती है और दूसरों को प्रत साधना के लिए प्रेरणा देते हैं। प्राचार्य में अनुराग अर्थात् उनके गुणों में अनुराग करना वस्तुतः आचार्य भक्ति कहलाती है।' आचार्य भक्ति में भक्त के द्वारा उन्हें उपकरण शान के साथ ही शुभ भावना पूर्वक उनके पैरों का पूजन किया जाता है। आचार्य भक्ति के फल का उल्लेख करते हुए जनधर्म में स्पष्ट कहा गया है कि माचार्यों की भक्ति करने वाला अपने अष्टकर्मों को क्षय करके संसार-सागर से पार हो जाता है। जन-हिन्दी पूजा-काव्य परम्परा में आचार्य भक्ति के अनेक प्रसंग उल्लिखित हैं। बीसवीं शती के कविवर सुधेश जन विरचित 'श्री आचार्य शान्ति सागर का पूजन' नामक काव्यकृति में इस भक्ति के अभिदर्शन होते हैं। कवि के मास्म निवेदन में कितना सार अभिव्यज्जित है। आपने अपने तपश्चरण द्वारा हे आचार्यबर सम्पूर्ण रति मनोरथों को जीत लिया है अस्तु १. जिण बिम्बणाणमयं संजम सुदं सुदीय राय च। जंदेड दिक्ख सिक्खा कम्मक्खय कारणे सदा ।। -अष्टपाहुड़, आचार्य कुन्द कुन्द, गाथांक १६, श्री पाटनी दि० जन ग्रंथमाला, मारोठ, मारवाड़, प्रथम संस्करण १६५० । २. तत्र आचारन्ति तस्माद् व्रतानि इति आचार्यः । -सर्वार्थसिदि. आचार्य पूज्यपाद, सम्पादक प० फूलचन्द्र, सिद्धान्त शास्त्री भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, प्रथमसंस्करण वि. सं. २०१२, पृष्ठ ४४२ । ३. अर्हयदाचार्येषु बहु श्रुतेषु प्रवचने च भाव विशुद्धि युक्तोऽनुरागो भक्तिः । -सर्वार्थसिद्धि, आचार्य पूज्यपाद, पं० फूलचन्द्र सिद्धान्त शास्त्री, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, प्रथम संस्करण वि. सं. २०१२, पृष्ठ ३३६ । ४. पाद पूजनं दान सम्मानादि विधानं मनः शुद्धि युक्तोऽनुरागश्चार्य भक्ति रुच्यते। -~-तत्वार्य वृत्ति, आचार्य श्रुतसागर, सम्पादक पं० महेन्द्र कुमार, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, वि० सं० २००५, प्रथम संस्करण, पृष्ठ २२८-२२६ । गुरु भक्ति संजमेण य तरंति संसार सायरं घोरं। छिति अट्टकम्म जम्मण मरणं ण पावंति।। --आचार्य भक्ति, दशभक्त्यादि संग्रह, सिखसेन जैन मोखलीय, अखिल विश्व जैन मिशन, सलाल, साबरकांठा, गुजरात, प्रथम संस्करण बी०नि० सं० २४८१, पृष्ठ १६४ ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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