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________________ ( ७८ ) हिम्दी जैन-पूजा-काव्य परम्परा में चारित्र भक्ति का उल्लेख 'रत्नत्रय पूजा' में उपलब्ध है। बड़ा और ज्ञान पूर्वक चारित्र, चतुगंतियों में व्याप्त forरूपी दु:खाग्नि को प्रशान्त करने के लिए सुधा-सरोवरी के समान सुखद होता है ।' कविवर यानतराय का कथन है कि सम्यक् चारित्र पूजा में चारित्र भक्ति का सुन्दर निरुपण हुआ है । कषाय शान्ति के लिए उत्तम चारित्र - भक्ति परमधि है। इसी को तीर्थंकर धारण कर कल्याण को प्राप्त होते हैं ।" सम्यक् चारित्र भक्ति की महिमा का उल्लेख करते हुए कविर्मनीषी छानतराय का विश्वास है कि सम्यक् चारित्र रूपी रतन को संभालने से नरक - निगोद के दुःखों से प्राण प्राप्त होता है साथ ही शुभ कर्मयोग की घाटिका पर धर्म की नाव में बैठकर शिवपुरी अर्थात् मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता है ।" योगभक्ति अष्टांग योग का धारी वस्तुतः योगी कहा जाता है।" योगी संज्ञा गणधरों १. चहुगति फणि विषहरन मणि, दुःख पावक जलधार । शिवसुख सुधासरोवरी, सम्यक्त्रयी निहार ॥ -- - श्री रत्नत्रय पूजा भाषा, खानतराय, राजेशनित्यपूजापाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटल वर्क्स, अलीगढ़, प्रथम संस्करण १६७६, पृष्ठ १६१ । २. विषय रोग औषधि महा, देव कषाय जलधार । तीर्थंकर जाको धरें, सम्यक् चारितसार || - श्री सम्यक् चारित्र पूजा, यानतराय, श्री जैन पूजा पाठ संग्रह, भागचन्द पाटनी, ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७ पृष्ठ ७४ । ३. सम्यक् चारित रतन सम्भालो, पंच पाप तजिके व्रत पालो । पंचसमिति श्रयगुपति गही जं, नरभव सफल करहु तर छीजें ॥ छीजं सदा तन को जतन यह, एक सयम पालिये । बहुरूoयो नरक- निगोद-माहीं, कषाय-विषयनि टालिये । शुभ - करम-जोग सुघाट आयो, पार हो दिन जात है । 'द्यानत' धरम की नाव बैठो, शिवपुरी कुशलात है ॥ - श्री सम्यक्चारित्रपूजा, बानतराय, श्री जैन पूजा पाठ संग्रह, श्री भागचन्द्र पाटनी, ६२ नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ ७५ । ४. योगोध्यान सामग्री अष्टांगानि, विधन्ते यस्स सः योगी । - जिनसहस्रनाम, पं. आशाधर, भारतीय ज्ञानपीठ काशी, प्रथम संस्करण १६५४, पृष्ठ ६० ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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