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________________ ( ७३ ) १०३ वीं प्रशस्ति 'पुण्यास्त्रव कथाकोश' की है जिसके कर्ता रामचन्द्रमुमुक्षु हैं, जो कुन्दकुन्दान्त्रयमें प्रसिद्ध मुनि केशवनन्दीके शिष्य थे | राम चन्द्रमुमुक्षुने पद्मनसेि शब्दों और अपशब्दों का ज्ञान प्राप्त कर उक्त पुण्याच ग्रन्थकी रचना की है । प्रशस्ति में वादीभसिंहकी भी बन्दना की गई है । इस ग्रन्थकी श्लोक संख्या चार हजार पाँच सौ है । ग्रन्थ प्रशस्ति में समयादिकका कोई उल्लेख नहीं है जिससे यह बतलाया जा सके कि यह ग्रन्थ अमुक समयमें रचा गया है। चूँकि इस ग्रंथकी एक लिखित प्रति सम्वत् १५८४ की देहलीके पंचायती मन्दिरके शास्त्र भण्डार में उपलब्ध है जिससे यह स्पष्ट है कि यह ग्रन्थ सं० १५८४ से पूर्वका रचा हुग्रा है। कितने पूर्वका यह अनुसन्धानसं संबन्ध रखता है । रामचन्द्र नामके अनेक विद्वान हो गये हैं। एक रामचन्द्र वह हैं जो बालचंद पंडितके शिष्य थे और जिसका उल्लेख श्रवणबेलगोलके शिलालेख नं० ४१ में पाया जाता है इनकी उपाधि 'मलधारी' श्री । यह उन रामचन्द्रमुमुक्षु भिन्न जान पडते हैं । दूसरे रामचन्द्र मुनि वे हैं जिनका उल्लेख मालपुरांरंज (Salpura Renge) जिला बडवानीमें नरवदा नदीके पास वहाँकी ८५ फुट ऊँची मूर्तिके समीप पूर्व दिशामें बने हुए जैन मन्दिर में अंकित शिलावाक्य में पाया जाता है । यह लेख संवत् १२२३ भाद्रपद वदि १४ शुक्रवारका १ 1 १ यस्य स्वच्छतुषारकुन्दविशदा कीर्तिगुणानां निधिः । श्रीमान् भूपतिवृन्दवन्दितपदः श्रीरामचन्द्रो मुनिः ॥ विश्व क्ष्माभृद खर्ब शेखरशिखासञ्चारिणी हारिणी । उप शत्रुजितो जिनस्य भवनव्याजेन विस्फूर्जति ॥ १॥ रामचन्द्रमुनेः कीर्ति संकीर्ण भुवनं किल । श्रनेकलोकसंङ्घर्षाद् गता सवितुरन्तिकं ॥ २ ॥ सम्वत् १२२३ वर्षे भाद्रपद वदि १४ शुक्रवार ।
SR No.010101
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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