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________________ (६७) लिया है, पर कृतज्ञताके नाते उनका स्मरण भी नहीं किया । ___श्रवणबेलगोलके ४० वें नं० के शिलालेखमें मूलसंघान्तर्गत नन्दीगणके भेदरूप देशीयगणके गोल्लाचार्यके शिष्य एक अविद्धकर्ण कौमारवती पद्मनन्दी सैद्धान्तिकका उल्लेख है जो कर्णवेध संस्कार होनेसे पूर्व ही दीक्षित हो गए थे, उनके शिष्य और कुलभूषणके सधर्मा एक प्रभाचन्द्रका उल्लेख पाया जाता है जिसमें कुलभूषणको चारित्रसागर और सिद्धान्तसमुद्रके पारगामी बतलाया है, और प्रभाचन्द्रको शब्दाम्भोरुहभास्कर तथा प्रथित तर्कग्रन्थकार प्रकट किया है । इस शिलालेखमें मुनि कुलभूषणकी शिष्यपरम्पराका भी उल्लेख निहित है। अविद्धकर्णादिकपद्मनन्दी सैद्धान्तिकास्योऽजनि यस्य लोके । कौमारदेवव्रतिता प्रसिद्धिर्जीयात्तु सज्ज्ञाननिधिः स धीरः ।। तच्छिष्यः कुलभूषणाख्ययतिपश्चारित्रवानिधिःसिद्धान्ताम्बुधिपारगो नतविनेयस्तत्सधर्मो महान । शब्दाम्भोरुहभास्करः प्रथिततकेग्रन्थकारः प्रभाचन्द्राख्या मुनिराज पंडितवरः श्रीकुन्दकुन्दान्वयः ।। तस्य श्रीकुलभूषणाख्यसुमुनेशिशष्यो विनेयस्तुतसवृत्तः कुलचन्द्रदेवमुनिपस्सिद्धान्तविद्यानिधिः ॥ श्रवणबेलगोलके ५५ वे शिलालेखमें मूलसंघ देशीयगणके देवेन्द्र सैद्धान्तिकसे शिष्य चतुमुखदेवके शिष्य गोपनन्दी और इन्हीं गोपनन्दीके सधर्मा एक प्रभाचन्द्रका उल्लेख और भी किया गया है। जो प्रभाचन्द्र धाराधीश्वर राजा भोज द्वारा पूजित थे और न्यायरूप कमलसमूहको विकसित करने वाले दिनमणि, और शब्दरूप अब्जको प्रफुल्लित करने वाले रोदोमणि ( भास्कर ) सदृश थे । और पण्डितरूपी कमलोंको विकसित करनेवाले सूर्य तथा रुद्रवादिदिगजोंके वश करने के लिये अंकुशके र देखो अनेकान्त वर्ष २ किरण १० पृ० ५८४ में प्रकाशित 'प्रमाणनय तत्त्वालोककी आधारभूमि नामका मेरा लेख ।
SR No.010101
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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