SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (६४) प्रामवाल था और यह माह 'तोतू' के पुत्र थे, जो भट्टारक हेमचन्द्र के शिष्य थे। कवि बोरुने 'धर्मचक्र' की यह पूजा विक्रम संवत् १५८६ में रोहितासपुर (रोहतक) नगरके पार्श्वनाथ जिनमन्दिरमें की है । जिसे पद्मावतीपुरचालक पंडित जिनवासके उसदेशसे बनाया गया है । इस पुजा ग्रन्थकी प्रशस्तिमें इससे पूर्व तीन ग्रन्थोंक रचेजानेके नामोल्लेख पाये जाते है। उनमें अन्तक दो ग्रन्थ 'नन्दीश्वरपूजा' और ऋषिमएडलयंत्रपूजा-पाठ ये दोनों प्रन्थ अभी मेरे देखने में नहीं आए। इनके अतिरिक्त उन्होंने और ग्रन्थोंकी रचना की यह कुछ ज्ञात नहीं होता।। वृहन्सिद्धचक्रपूजाकी प्रशस्तिस ज्ञात होता है कि कवि वीरुने उसे विक्रमसम्बत् ११८४ में देहलीके मुगल बादशाह बाबरक राज्यकालमें उक्त रोहितासपुरक पार्श्वनाथमन्दिरमें बनाया है। पंडित जिनदास काष्ठासंघ माथुरान्वय और पुष्करगणके भट्टारक कमलकीर्ति कुमुदचन्द्र और भट्टारकयशसेनके अन्वयमें हुए हैं । यशसनकी शिष्या राजश्री नामकी थी, जो संयमनिलया थी। उसके भ्राता पद्मावतीपुरवाल वंशमें समुत्पन नारायणसिंह मामकं थे, जो मुनि दान देनेमें दक्ष थे । उनके पुत्र जिनदास नामके थे जिन्होंने विद्वानोंमें मान्यता प्राप्त की थी। इन्हीं पंडित जिनदासके आदेश से उन पूजापाठकी रचना की गई है और इसीलिए यह ग्रन्थ भी इन्हीं के नामांकित किया गया है। ____१४वीं, ११३वीं, १३५वीं, १३६वीं, १३७वीं, १३८वीं, प्रशस्तियों क्रमशः 'शब्दाम्भोजभास्कर' 'तत्त्वार्थवृत्तिपद विवरण' 'पंचास्तिकाय प्रदीप' 'श्रात्मानुशासनतिलक' 'अाराधना गद्य कथा-प्रबन्ध और 'प्रवचनसरोजभास्कर' नामक ग्रन्थों की हैं। इनमें प्रथम प्रशस्ति एक व्याकरण ग्रन्थ की है, जो 'जैनेन्द्रमहान्यासके नामसे प्रसिद्ध है। यह ग्रन्थ अपूर्णरूपमें ही उपलब्ध है---ग्रन्थ की अधिकांश प्रतियाँ तीन अध्याय तक और कोई कोई प्रति साढ़े तीन अध्याय की भी लिखित प्राप्त होती है। ___ x इसके सम्बन्ध में पं० महेन्द्रकुमारजी 'न्यायाचार्यने न्याय कुमुदचन्द्र द्वितीयाभागकी प्रस्तावनामें विशेष विचार किया है।
SR No.010101
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy