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________________ ( २ ) कोई समुल्लेख उनके द्वारा किया हुआ मेरे देखनेमें नहीं श्राया । और न यही बताया है कि ये कहांके भट्टारक थे । ग्रंथमें उल्लिखित उनकी गुरुपरम्परा निम्न प्रकार है : देवेन्द्रकीर्ति, त्रिलोककीर्ति, सहस्रकीर्त्ति, पद्मनन्दी, यशः कीर्ति, ललितकीर्ति, और धर्मकीर्ति । ३० वीं प्रशस्ति 'हरिवंशपुराण' की है, जिसके कर्ता पण्डित रामचन्द्र हैं, जो लंबकंचुक (लमेचू ) वंशमें उत्पन्न हुए थे । इनके पिताका नाम 'सुभग' और Hraat नाम 'देवको' था । इनकी धर्मपत्नीका नाम 'मल्हणा' देवी था, जिससे 'अभिमन्यु' नामका एक पुत्र उत्पन्न हुआ था । जो शीलादि गुणोंसे अलंकृत था । कविने उक्त श्रभिमन्युकी प्रार्थनासे आचार्य जिनसेनके हरिवंशपुराणानुसार संक्षिप्त 'हरिवंशपुराण' को रचना की है । ग्रन्थकी रचना कब और कहां पर हुई इसका प्रशस्ति में कोई उल्लेख नहीं है । परन्तु कारंजाके बलात्कारगणके शास्त्रभंडारकी एक प्रति सं० १५६०की लिखी हुई है। उससे सिर्फ इतना ही जाना जाता है कि पंडित रामचन्द्र वि० सं० १५६० से पूर्ववतीं हैं। कितने पूर्ववर्ती हैं ? यह कुछ भी ज्ञात नहीं हो सका । ३१वीं प्रशस्ति 'जयपुराण' की है जिसके कर्ता ब्रह्मकामराज हैं । यह बलात्कार गणक भट्टारक पद्मनंदीके अन्वय में हुए हैं और जो भ० शुभचन्द्रके शिष्य सकलभूषण के शिष्य भट्टारक नरेन्द्रकीर्तिक शिष्य ब्रह्म सह, afe शिष्य थे । ब्रह्म कामराजने भ० सकलकीर्तिके श्रादिनाथचरितको देखकर संवत् १५६० में भ० रामकोर्तिके पट्टधर भ० पद्मनन्दीके उपदेशसे और पण्डित जीवराजकी सहायतासे फाल्गुन महीने में जयपुराण नामक ग्रंथ बनाकर समाप्त किया है। ३२वीं, प्रशस्तिसे लेकर ४०वीं ११२वीं, ११४वीं और ११६वीं ये सब प्रशस्तियाँ क्रमसे कार्तिकेयानुप्रेक्षाटीका, चन्द्रप्रभचरित, पार्श्वनाथकाव्य-पंजिका, श्रेणिकचरित्र, पाण्डवपुराण, जीवंधरचरित्र, चन्दनाचरित, प्राकृतलक्षणसटीक, अध्यात्मतरंगिणी, करकंडुचरित्र और frontoल्प नामके ग्रन्थों की हैं। जिनके कर्ता भट्टारक शुभचन्द्र
SR No.010101
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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