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________________ (२७ ) क्या है। हाँ, उपलब्ध प्रति परसे इतना जरूर कहा जा सकता है कि इस प्रन्थकी रचना विक्रमकी १५वीं शताब्दीके उत्तरार्धसे पूर्व हो चुकी थी, क्योंकि उक ग्रन्धकी ७६ पत्रात्मक एक प्रति वि० सं० १४८६ की लिखी हुई नयामन्दिर धर्मपुरा देहलीक शास्त्रभण्डारमें सुरक्षित है । जिसे भ. गुगणकीर्तिके लघुभ्राता एवं शिप्य भ. यशःकीर्तिने लिखवाया था। प्रस्तुत ग्रन्थ लम्बकंचुक कुलके प्रसिद्ध साहू लक्ष्मणकी प्रेरणासे रचा गया है और वह उन्हींक नामांकित भी किया गया है। पर वे कौन थे और कहाँ के निवासी थे, यह प्रशस्ति-पद्योंकी अशुद्धिता कारण ज्ञात नहीं हो सका। २४वीं प्रशस्ति 'त्रिलोकसारटीका' की है, जिसके कर्ता भ० सहस्रकीर्ति हैं, जिन्होंने अाशापल्लीके वासुपूज्यजिनालयमें प्राचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्तीके त्रैलोक्यसारग्रन्थकी टीका लिखी है । सहस्रकीर्ति नामके अनेक भट्टारक हो गए हैं, उनमेंसे यह कौन हैं? और प्रशस्तिमें उल्लिखित श्राशापल्ली कहां है, यह विचारणीय है। प्रशस्तिमें रचनाकाल भी दिया हुश्रा नहीं है इससे ठीक समय निश्चय नहीं किया जा सका। २५ ची प्रशस्ति 'धर्मपरीक्षा' ग्रन्थकी है, जिसके कर्ता मुनि रामचन्द्र है । मुनि रामचन्द्र पूज्यपादके वंशमें (ब्राह्मण कुलमें) उत्पन्न हुए थे। इनके गुरुका नाम पद्मनन्दी था । परन्तु प्रशस्तिमें रचना समय और गुरु परम्पराका इतिवृत्त न होनेसे समयका निश्चय करना कठिन है। रामचन्द्र नामके अनेक विद्वान हो गए हैं। २६ वीं प्रशस्ति 'करकण्डुचरित' की है जिसके रचयिता भ० जिनेन्द्रभूषण हैं, जो भट्टारक विश्वभूषणके पट्टधर थे, और ब्रह्महर्षसागरके पुत्र x “सम्बत १४८६ वर्षे आषादवदी । गुरुदिन गोपाचलदुर्गे राजा हूंगरसिंह राज्यप्रवर्तमान श्रीकाष्ठासंघे माथुरान्वये पुष्करगणे प्राचार्य श्री महसकीर्तिदेवास्तत्पष्टुं प्राचार्य श्रीगुणकीर्तिदेवास्ताच्छिष्य श्रीयशःकीतिदेवम्नेन निजज्ञानावरणीयकर्मक्षयार्थ इदं भविष्यदत्तपंचमीकथा लिखापितम् ।"
SR No.010101
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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