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________________ ( १७ ) श्रुतसागरने पं० आशाधरजीके महा अभिषेकपाठ पर एक टीका लिखी है उस टीकाकी एक प्रति भट्टारक सोनागिरके भण्डारमें सुरक्षित है जो संवत् १९७० की लिखी हुई है। जिससे उसकी रचना सं० १५७० से पूर्व हो चुकी थी, दूसरी प्रति सं० १५८२ की लिखी हुई है जिसे भ० लक्ष्मीचन्द्र के शिष्य ब्रह्म ज्ञानसागरके पठनार्थ श्रार्या विमलश्रीकी चेली और भ० लक्ष्मीचन्द्र द्वारा दीक्षित विनयश्रीने स्वयं लिखकर प्रदान की थी । ब्रह्म नेमिदत्तने भी इनका अपने ग्रन्थों में प्रादरपूर्वक उल्लेख किया है। अब तक ब्रह्मश्रुतसागरकी ३८ रचनाओंका पता चला है, जिनमेंसे अाठ तो टीका ग्रन्थ हैं। और चौबीस कथाएँ हैं जो भिन्न-भिन्न समयों में विभिन्न व्यक्रियांक अनुरोधसे रची गई हैं। इन सब कथाओंमें आदि अंत प्रशस्तियां भी अंकित हैं जिनसे वे एक ग्रन्थका अंग नहों कही जा सकती हैं । अवशिष्ट सब रचनाएँ भी स्वतन्त्र कृतियों है उनकी उपलब्ध सब कृतियोंके नाम इस प्रकार हैं: १ यशस्तिलक चन्द्रिका २ तत्त्वार्थवृत्ति, ३ तत्त्वत्रयप्रकाशिका, ४ जिनसहस्रनामटीका, ५ महाअभिषेक टीका ६ षट्पाहुडटीका ७ सिद्धभक्ति टीका, ८ सिद्धचक्राष्टक टीका, ६ ज्येष्टजिनवर कथा, १० रवित्रत कथा, ११ सप्तपरमस्थान कथा १२ मुकुटसप्तमी कथा १३ अक्षयनिधि कथा १४ षोडशकारण कथा १५ मेघमालाव्रतकथा १६ चन्दनपष्ठी कथा १७ लब्धिविधान कथा १८ पुरन्दरविधानकथा १६ दशलाक्षिणीव्रत कथा २० पुष्पांजलिव्रत कथा २१ आकाशपंचमी कथा २२ मुक्तावलिव्रतकथा २३ निर्दु खसप्तमी कथा २४. सुगन्धदशमी कथा २५ श्रवणद्वादशीकथा २६ रत्नत्रयव्रतकथा २७ अनन्तव्रतकथा २८ अशोकरोहिणीकथा २६ तपोलक्षणपंक्तिकथा ३० मेरूपंक्तिकथा ३१ विमानपंक्तिकथा ३२ पल्लविधानकथा ३१. श्रीपालचरित, ३४ यशोधरचरित ३५ औदार्य चिन्तामणि स्वोपज्ञवृत्तियुक्त (प्राकृत व्याकरण) ३६ श्रुतस्कंध पूजा ।। इनके दो स्तोत्र अभी हमें नया मन्दिर देहलीके शास्त्रभंडारके ७ वें
SR No.010101
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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