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________________ (२) गुरुपरम्पराओं, उनके स्थान, समय, कार्यक्षेत्र और उनकी ज्ञानलिप्साके साथ साथ तत्कालीन परिस्थितियों, राजाओं, महामात्यों और नगर सेठ आदिके इतिवृत्त सहज ही संकलित किये जा सकते हैं। इन प्रशस्तियोंको दो विभागोंमें बाँट दिया गया है, उनमेंसे इस प्रथम विभागमें मुख्यतया संस्कृत और प्राकृत ग्रन्थोंकी प्रशस्तियों ही दी गई हैं। अपभ्रंशभाषा प्रन्थोंकी प्रशस्तियोंका एक जुदा ही संग्रह निकालनेका विचार है इसीसे उन्हें इस विभागमें स्थान नह दिया गया है। उन प्रशस्तियोंका संग्रह भी प्रायः पूरा हो चुका है जो सम्पादित होकर प्रेसमें दिया जायगा । ये सब प्रशस्तियां प्राय अप्रकाशित हस्त. लिम्वित ग्रन्थों परसे नोट की गई हैं और उन्हें मावधानीसे संशोधित कर देनेका उपक्रम किया गया है। फिर भी दृष्टि-दोष तथा प्रेम श्रादिकी असावधानीसे कुछ अशुद्धियोंका रहजाना सम्भव है। प्रस्तुत संग्रहमें ४-५ ऐसे ग्रन्थोंकी प्रशस्तियाँ भी संग्रह की गई हैं जो अन्यत्र अपूर्ण तथा अशुद्ध रूपमें प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्हें कुछ विशेषताओंके साथ शुद्ध प्रतियों परसे संशोधित करके दिया गया है। दो-चार ऐसे ग्रन्थोंकी प्रशस्तियां भी अंकित की गई हैं जो संग्रह करते अथवा छपाते समय तो अप्रकाशित थे लेकिन बादको प्रकाशित हो गये हैं। फिर भी समयादिककी दृप्टिसे उनका संग्रह भी उपयोगी है। इस प्रशस्तिसंग्रहके अन्तमें कुछ परिशिष्ट भी दिये गये हैं जिनमें प्रशस्ति गत भौगोलिक नामों, संधों, गणों, गच्छों स्थानों, राजाओं, राजमन्त्रियों, विद्वानों प्राचार्यो, भट्टारकों तथा श्रावक श्राविकाओंके नामोंकी सूचीको अकारादि क्रमसे दिया गया है, जिससे अन्वेषक विद्वानोंको विना किसी विशेष परिश्रमकं उनका पता चल सके । ___ इस १७१ अन्य-प्रशस्तियों के संग्रहमें, जिनके नाम अन्यत्र दिए हुए हैं, जिनमें उनके कर्ता १०४ विद्वानों श्रादिका संक्षिप्त परिचय भी निहित है और उनका संक्षिप्त परिचय प्रागे दिया जायगा जिनके नाम इस प्रकार हैं:
SR No.010101
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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