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________________ ( १०६ ) जैन साहित्य में छन्दशास्त्र पर 'छन्दोऽनुशासन +, स्वयम्भूछन्द १ छन्दकोष२ और प्राकृतपिंगल३ आदि अनेक छन्द ग्रन्थ लिखे गये हैं । उनमें प्रस्तुत छन्दोऽनुशासन सबसे भिन्न है । यह संस्कृत भाषाका छन्द ग्रन्थ है और पाटन श्वेताम्बरीय ज्ञानभण्डारमें ताडपत्र पर लिखा हुआ विद्यमान है ४ ४ । उसकी पत्रसंख्या ४२ और श्लोक संख्या ५४० के करीब है और स्वोपज्ञवृत्ति या विवरण से अलंकृत है । इस ग्रन्थका मंगल पद्य निम्न प्रकार है + यह छन्दोनुशासन जयकीर्तिके द्वारा रचा गया है । इसे उन्होंने मांडव पिंगल, जनाश्रय, सेतव, पूज्यपाद (देवनन्दी) और जयदेव आदि विद्वानोंके छन्द ग्रन्थोंको देखकर बनाया है । यह जयकीर्ति श्रमलकीर्तिके शिष्य थे । सम्वत् १०१२ में योगसारकी एक प्रति श्रमलकोर्तिने faraarई थी इससे जयकीर्ति १२वीं शताब्दीके उत्तरार्द्ध और १३वीं शादी पूर्वार्ध विद्वान जान पडते है । यह ग्रन्थ जैसलमेरके श्वेताम्ब रीय ज्ञानभण्डारमें सुरक्षित है। (दम्बो गायकवाड संस्कृतसीरीज मे प्रकाशित जैसलमेर भाण्डागारीय ग्रन्थानां सूची । ) १ यह अपभ्रंश भाषाका महत्वपूर्ण मौलिक छन्द ग्रन्थ है इसका सम्पादन एच० डी० वेलंकरने किया है। देखो बम्बई यूनिवर्सिटी जनरल सन् १६३३ तथा रायल एशियाटिक सोसाइटी जनरल सन् १९३५ / २ यह रत्नशेखरसूरिद्वारा रचित प्राकृतभाषाका छन्दकोश है । ३ पिंगलाचार्य के प्राकृत पिगलको छोडकर, प्रस्तुत पिगल ग्रन्थ अथवा 'छन्दोविया' कविवर राजमलको कृति है जिसे उन्होंने श्रीमाल कुलोत्पन्न वणिक्पति राजा भारमल्लके लिये रचा था । इस ग्रन्थमें छन्दोंका निर्देश करते हुए राजा भारमलके प्रताप यश और वैभव श्रादिका अच्छा परिचय दिया गया है। इन छन्द ग्रन्थोंके अतिरिक्त छन्दशास्त्र वृत्तरत्नाकर और श्रुतबोध नामके छन्दग्रन्थ और हैं जो प्रकाशित हो चुके हैं। * See Patan Catalague of Manuecripts P. 117.
SR No.010101
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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