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________________ ( १०१ ) । पद्मनाम और विजयनाथ माधुर आदिका नाम उल्लेखनीय है । पण्डित वामदेव प्रतिष्ठादिकार्यो के ज्ञाता और जिनभक्तिमें तत्पर थे। उन्होंने नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्तीके त्रिलोकसारको देखकर इस ग्रन्थकी रचना की है। इस ग्रन्थकी रचनायें प्रेरक पुरवाडवंशमें कामदेव प्रसिद्ध थे उनकी पत्नीका नाम नामदेवी था, जिनसे राम लक्ष्मणके समान जोमन और लक्ष्मण नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए थे। उनमें जोमनका पुत्र नेमदेव नामका था, जो गुणभूषण और सम्यक्त्वसे विभूषित था, वह बड़ा उदार, न्यायी और दानी था। उक्त नेमदेवकी प्रार्थनासे ही इस ग्रन्थकी रचना की गई है । इस ग्रन्थ में तीन अधिकार हैं जिनमें क्रमशः अधः, मध्य और ऊर्ध्वलोकका वर्णन किया गया है । ग्रन्थ में रचनाकाल दिया हुआ नहीं है जिससे यह निश्चित बतलाना तो कठिन है कि बामदेवने इस ग्रन्थकी रचना कब की है। परन्तु इस ग्रन्थकी एक प्राचीन मूल प्रति संवत् १४३६ में फीरोजशाह तुगलकके समय योगिनोपुर ( देहलो) में लिखी हुई ८६ पत्रात्मक उपलब्ध हैं । वह अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजीके शास्त्र भण्डारमें मौजूद है | और जिससे उक्त ग्रंथका रचनाकाल सं० १४३६ से बादका नहीं हो सकता | बहुत सम्भव है कि उक्त ग्रंथ संवत् १४३६ के आस-पास रचा गया हो। ऐसी स्थितिमे वामदेवका समय विक्रमकी १५ वीं शताब्दीका पूर्वार्ध है । इनकी दूसरी कृति 'भावसंग्रह' है जो देवनके प्राकृत भाव संग्रहका संशोधित अनुवादित और परिवर्धित रूप | यह ग्रन्थ माणिकचंद्र दि० जैन इंथमालामें छपा हुआ है और इनकी क्या रचनाएँ हैं यह निश्चित रूपसे कुछ ज्ञात नहीं होता । यहाँ यह बात खास तौर से नोट करने लायक है कि मुनिश्री कल्याणविजयजीने 'श्रमण भगवान महवीर' नामक पुस्तक जिनकल्प और स्थविरकल्प नामक प्रकरणके पृष्ठ ३१४ में वामदेवका समय सोलहवीं शताब्दी और रत्ननंदीका समय १७वीं शताब्दी लिखा है, जो उक्तग्रन्थमें की गई ऐतिहासिक भूलोंका नमूना मात्र है, देखो, महावीर अतिशय क्षेत्र कमेटी द्वारा प्रकाशित श्रामेर शास्त्र भण्डार, जयपुरकी ग्रंथ सूची पृ० २१८, ग्रन्थ नं० ३०६, प्रति नं० २ ।
SR No.010101
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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