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________________ सत्य ] 1 ५७ चाहिये । तब अपने धनकी रक्षा के लिये झूठ बोलना कैसे उचित कहा जा सकता है ? क्योंकि यहां तो स्वार्थ के लिये झूठ बोला गया है। समाधान-डाँकुओं से धनकी रक्षा करना स्वार्थ की ही रक्षा नहीं है किन्तु न्याय की भी रक्षा है, डांकुओं के द्वारा जो कुकृत्य हो रहा है वह अन्याय है । उसका विरोध करने के लिये हम झूठ बोलते हैं, उसके साथ स्वार्थरक्षा हो गई यह दूसरी बात है, परन्तु उसका असली लक्ष्य न्यायरक्षा है, इमलिये उसके लिये वह झूठ बोल सकता है। शंका-एक आदमी पर खून का मुकदमा चल रहा है । यदि हम झूठी गवाही दे दें तो वह बच सकता है। ऐसी हालत में हम झूठी गवाही दें या न दें । झूठी गवाही देने से उसका कल्याण है और सच्ची गवाही देने से वह मारा जायगा और जिस आदमी का ग्वन हुआ है वह तो कुछ वापिस आ नहीं सकता। समाधान-वह आदमी तो वापिस न आजायगा किन्तु खुनी को मिलनेवाली फाँसी हजारों खनियों के हौसले ठंडे किये रहेगी । भविष्य के इन खूनियों को खून के पाप से बचाये रखने के लिये उसको फाँसी मिलना उचित है । इसलिये ऐसी ही गवाही देना चाहिये जिससे उसका अपराध साबित हो । हां, अगर उसका कृत्य अन्याय को रोकने के लिये हुआ है तो हम झूठी गवाही भी दे सकते हैं। जैसे-- मानलो कुछ राहगीर व्यापारियों पर डाकुओं ने आक्रमण किया । राहगीरों में से एक ने पिस्तौल चलाकर एक डॉकू को मार डाला । इसलिये डॉकू गोली चलानेवाले पथिक को ढूँढते
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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