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________________ प्रतिमा ] [ ३५१ म्बर सम्प्रदाय में पाँच अणुव्रतों के साथ सात शीलवतों के पाउने है। हाँ, शीलवन में अतिचार बचाने की ज़रू ' का भी विधान रत नहीं है। सामायिक - प्रातःकाल, मध्याह्नकाल और सन्ध्यासमय निरतिचार सामायिक करना । प्रोषध - अष्टमी चतुर्दशी अमावस और पूर्णिमा को उपवास करना । दिगम्बर सम्प्रदाय में सिर्फ अष्टमी चतुर्दर्शी का विधान है । पडिमापडिमा - अष्टमी और चतुर्दशी को रात्रि में कायोत्सर्ग करना, स्नान नहीं करना; दिन में ही भोजन लेना; काँछ नहीं लगाना; दिन में सदा ब्रह्मचर्य रखना और पर्व - दिनों में रात्रि में भी ब्रह्मचर्य रखना, शेष दिनों में भी परिमित ब्रह्मचर्य रखना, कायोत्सर्ग में जिनेन्द्र का ध्यान करना और अपने दोष देखना | अब्रह्मवर्जन- पूर्ण ब्रह्मचर्य पालन करना । अचिचाहार वर्जन- वनस्पति तथा कबे पानी आदि का त्याग करना । हूँ निरतिक्रमणमणुव्रत पञ्चकमपि शीलसतकं चापि । धारयते निःमा यो योऽसा प्रतिनाम्मतो प्रतिकः ॥ * सम्ममन्य उपाय सिक्खावयविशेष नाणीय | अभि उसी पडिमं ठायगराईयं ॥ अणाण बिडमोई मउलिकडो दिवस ब्रह्मचारी ब । राई परिमाणको पडिया बच्चेस दियहेस । शायद पडिमा ठिओ। तिलांएपुज्जे जिणे जियकसाए । निदोस पचणीय अन्नं वा पंच जामासा ॥
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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