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________________ सम्यकचारित्र का रूप] हैं उनके ऊपर हमारे परिणामों का ही अच्छा या बुरा प्रभाव प.. सकता है, न कि बाहिरी कार्यों का। ४-दूसरे के अभिप्रायों का हमारे ऊपर प्रभाव अधिक पड़ता है। एक बालक को प्रेमपूर्वक बहुत जोर से थपथपाने पर भी वह प्रसन्न होता है, परन्तु क्रोध के साथ उंगली का स्पर्श भी वह सहन नहीं करता । यदि हमारे विषय में किसी के अच्छे भाव होते हैं, तो हम प्रसन्न होते हैं और बुरे भाव होते हैं तो अप्रसन्न होते हैं इसलिये हमको भावना की शुद्धि करना चाहिये। प्रश्न-यदि भावशुद्धि के ऊपर ही कर्तव्याकर्तव्य, चारित्रअचारित्र का निर्णय करना है तो 'सार्वत्रिक और सार्वकालिक अधिकतम प्राणियों का अधिकतम सुख देने वाली नीति' को कर्तव्य की कसौटी क्यों बताया ? भावना को ही कसौटी बनाना चाहिये । उत्तर-भावना की मुख्यता होने पर भी कर्तव्याकर्तव्य का निर्णय करने के लिये किसी कसौटी की आवश्यकता बनी ही रहती है । उदाहरण के लिये, कुरुक्षेत्र में अर्जुन की भावना शुद्ध होने पर भी वह यह नहीं समझ सकता था कि इस समय मेरा कर्तव्य क्या है ? भावना की बड़ी भारी उपयोगिता यही है कि उपर्युक्त नीति का ठीक ठीक पालन हो। हाथ पैर आदि सभी अंग ठीक ठीक काम करें, इसके लिये प्राण की आवश्यकता है। अकेले प्राण कुछ नहीं कर सकते, साथ ही प्राणहीन शरीर भी व्यर्थ है । इसी प्रकार उपयुक्त कसौटी न हो तो भावशुद्धि होने पर भी चारित्र का पालन नहीं हो सकता; और भावशुद्धि न होने पर उपयुक्त नीति का पालन मी असंभव है । इसलिये भावपूर्वक उपर्युक्त नीति
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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