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________________ मुनिसंस्था के नियम [१९३ भोजन करनेवाला मुनि भी उस पाप से बच नहीं सकता। उद्दिष्ट-त्याग की शर्त को अनिवार्य कर देने से कई बड़े बड़े नुकसान भी हैं । कोई भी देश अपनी आर्थिक परिस्थिति आदि के कारण भिक्षावृत्ति को कानून से बन्द कर दे तो इस प्रकार की साधु-संस्था इस प्रकार के कानून बनाने में बाधक होगी. अथवा अपने लिये कुछ ऐसे अपवाद रखवायगी जिससे वह भिक्षा ले सके। लेकिन इस एक ही अपवाद से सभी सम्प्रदाय के साधु इस प्रकार का अपवाद चाहेंगे और उन्हें देना ही पड़ेगा । तब . साधुवेषी भिक्षुकों की संख्या लाखों पर पहुंचेगी और वह कानून निरर्थक हो जायगा । यदि इस प्रकार के कानून बनानेवालों का जोर ज्यादह हुआ तो इस साधु-संस्था को उठा देना पड़ेगा या चोरी से चलाना पड़ेगा; परन्तु यह सब अनुचित है । इसी से लगती हुई दूसरी बात यह है कि इससे अकर्मण्यों की संख्य बढ़ती है । लोग परिश्रम करने को पाप और भिक्षावृत्ति को-जिसमें हरामखोरी के लिये सबसे अधिक गुंजाइश है-पुण्य समझने लगते हैं । साधु लोग, समाज के द्वारा पोषित होना अपना हक समझ लेते हैं और समाज को इच्छा न रहते हुए भी, भूखों न मर जाय, इस डर से भोजन कराना ही पड़ता है । इस प्रकार साधुओं के जीवन में बेजिम्मेदारी और समाज के ऊपर एक बोझ लदता है । यद्यपि साधु-संस्था का पुल न कुछ बोझ समाज को उठाना ही पड़ता है परन्तु बह. इस दंग का अनिवार्य न होना चाहिये और साधु-संस्था के लिये निमलिखित में मार्ग खुले रहना चाहियेः अगर कोई देसरा उपाय न हो तो रास्ते में चलते चलते
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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