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________________ १८०] [जैनधर्म-मीमांसा आवश्यकता होती है । पत्नी को पति और पति को पना सिर्फ प्रतिकूल होकर ही बाधक नहीं होते बल्कि अनुकूल होकर के भी बाधक होते हैं । मोह, जिसे कि लोग प्रेम समझते हैं- एसी बाधाएँ उपस्थित करता है, तब तीर्थकर या क्रान्तिकार का गृह त्याग करना पड़ता है। इस प्रकार गृह त्याग के अनेक कारण हैं । जिन तीर्थंकरों के सामने वे कारण उपस्थित होते हैं, वे गृह त्याग करते हैं और जिनके सामने वे कारण उपस्थित नहीं होते,वे गृह त्याग नहीं करते । तीर्थकर घर में रहें या वन में, उनमें निःस्वार्यता और निर्लिप्तता रहती है। घर में रहते हुए भी वे गृह-त्यागी होते हैं । इससे यह बात समझ में आ जाती है कि पूर्ण-चारित्र और अपूर्ण चारित्र का सम्बन्ध गृहस्थसंस्था या मुनि-संस्था से नहीं है। चारित्र की पूर्णता या अपूर्णता का सम्बन्ध भावना पर निर्भर है। पूर्ण और अपूर्ण चारित्र का सम्बन्ध गहस्य और मुनि-संस्था से हो या न हो; परन्तु इन दोनों संस्थाओं के बाहिरी नियमों में कुछ न कुछ अन्तर रखना पड़ेगा । यह बहुत कुछ सम्भव है कि किसी अवस्था में मुनि संस्था हटा दी जाय; परन्तु अधिकांश समय में इस संस्था की आवश्यकता रहती है । हाँ, एक तरह की विकृत मुनि-संस्था तोड़कर दूसरी तरह की मुनि-संस्था बनाई जा सकती है। उसका स्थान भी ऊँचा-नीचा बदला जा सकता है, आर्थिक दृष्टि से उसे अधिक स्वावलम्बी बनाया जा सकता है । इस प्रकार इसमें बहुत परिवर्तन हुए हैं-होते हैं।
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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