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________________ १३८] (जैन-धर्म-मामांसा समाधान--जीवनोपयोगी वस्तुओं का संग्रह करना या उनको प्राप्त करने के साधनों का संग्रह करना एक ही बात है । व्यवहार की सुगमता के लिये भागोपभोग की वस्तुओं के स्थान में चाँदी-सोना या उसके सिक्के या नोट वगैरह स्थापित कर लिये जाते हैं, इसालेये सिक्का आदि का मूल्य मूल वस्तुओं के समान ही है। सिको या नोटों का संग्रह जब एक जगह हो जाता है तब दूसरों को वे नहीं मिल पाते, इसलिये दूसरे लोग भागोपभोग की सामग्री क्या देकर प्राप्त करें ! इसलिये किसी भी रूप में धन का संग्रह किया जाय, वह दूसरों के न्यायोचित अधिकारों को छौनता है, इसलिये पाप है। शंका-यदि परिग्रह को पाप माना जायगा तब तो समाज का विकास ही रुक जायगा । अगर धन-संचय का प्रलोभन न रह नायगा तो कोई असाधारण कार्य क्यों करेगा ! फिर तो किसी भी तरह के आविष्कार न हो सकेंगे और मनुष्य जङ्गली ही रह जायगा उत्तर-संयमी मनुष्य तो बिना किसी प्रलोभन के कर्तव्यवश समाज की उन्नति के लिये असाधारण कार्य करता है। फिर भी यह ठीक है कि ऐसे संयमी इने-गिने ही होते हैं इसलिये प्रलोभन आवश्यक है। इसके लिये यह उचित है कि जो वसाधारण काम करे, उसे तदनुसार ही असाधारण धन दिया जाय। परन्तु उसका कर्तव्य है कि वह या तो उस धन का दान कर दे अथवा भोग करले . पहिले मार्ग से उसे यश मिलेगा, दूसरे से काम-सुख । दोनों ही मार्ग से धन दूसरों के साथ में पहुँच कर उनें
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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