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________________ १.८] [जैन-धर्म-मीमांसा क्षय नहीं करते या इतना नहीं करते जितना मैथुनसे होता है। बल्कि भोजनादिसे शक्ति की वृद्धि तक होती है । इसलिये भी मैथुनको अन्य विषयोंकी श्रेणीसे जुदा किया गया है। ४-मैथुनसेवनके बाद एक प्रकार की ग्लानि पैदा होती है इसलिये यह सुख पीछेसे ग्लानिरूप दुःख का देनेवाला है। ५-इस में स्थायिता नहीं है। ६-जल, वायु और भोजनादि जिस प्रकार जीवन के लिये आवश्यक हैं, उस प्रकार मैथुन नहीं । इसलिये मैथुनसेवन विकारों की तीव्रताका सूचक होनेसे पाप है। प्रश्न-जिस प्रकार भोजन वगैरह शरीरकी माँग है, उसी प्रकार मैथुन भी शरीरकी माँग है । शरीरकी इस माँगकी अगर पूर्ति न की जाय तो इसका शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ता है' और अनेक नाहकी बीमारियाँ भी पैदा हो जाती हैं। उत्तर-बीमारियाँ पैदा होती है तब, जब इच्छाएँ तो पैदा होकर हृदयमें घूमती रहती हैं और उनको कार्यरूपमें परिणत होने का मौका नहीं मिलता । परन्तु उन इच्छाओंका अगर रुरान्तर करदिया जाय तो मैथुन की आवश्यकता नहीं रहती। ऐसी वासनाएँ मातृभक्ति, भगिनीप्रेम, पुर्ववात्सल्य, विश्वप्रेम, दीनसेवा आदि अनेक सवृत्तियोंमें परिवर्तित हो सकती हैं। जब हमारे ऊपर कोई भयंकर विपत्ति आजाती है या असह्य इष्टवियोग होजाता है तब ऐसी वासना लुप्त हो जाती है अर्थात् उसका रूप परिवर्तित हो नाता है।
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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