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________________ सर्वज्ञत्व ओर जैनशाख [८१.. उसका स्मरण किया जा सकता है उसके लिये सर्वज्ञ होने की जरूरत नहीं है। सर्वज्ञत्व और जैनशास्त्र सर्वज्ञत्त्र के विषय में अभी तक जो चर्चा हुई उसमें युक्तियों के आधार से ही विचार किया गया है । पर सर्वज्ञत्व के वास्तविक रूप की खोज के लिये जैनशास्त्र भी काफी सहायता देते हैं। यह ठीक है कि ज्या ज्यों समय बीतता मया त्यों त्यों इस विषय की ही क्या हर एक विषय की मौलिक मान्यताओं पर आवरण पड़ता गया, फिर भी इस विषय में काफी सामग्री है। - दिगम्बर साहित्य और श्वेताम्बर साहित्य दोनों ही कुछ कुछ सामग्री देते हैं । यद्यपि दोनों ही काफी विकृत हैं दोनों पर लेखकों की स्याही का काफ़ी रंग चढ़ गया है, फिर भी श्वेताम्बर साहिल मौलिक सामग्री अधिक देते हैं । यद्यपि श्वेताम्बर सूत्रों में खुब मिलावट हुई है फिर भी ऐसी बातों को मिलावटी नहीं कह सकते जो भक्ति आदि को बढ़ानेवाली नहीं है और न जिन में साम्प्रदायिक पक्षपात दिखाई देता है। __ श्वेताम्बर दिगम्बरों में कौन प्राचीन है और किसके शास्त्र पुराने हैं कौन आचार्य कब हुआ, इसका विचार मैं यहाँ छोड़ देता हूं, क्योंकि वह सब ऐतिहासिक चर्चा सर्वज्ञ चर्चा से भी कई गुणा स्थान माँगती है, इससे मूल बात बिलकुल दब जायगी । यहाँ इतना ही समझलेना चाहिये कि श्वेताम्बर आचार्य और दिगम्बर आचार्य दोनों ही पुराने हैं और आचार्य रचनाओं से पुराना सूत्र साहित्य है।
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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