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________________ तीसरा युक्तयामास [७३ बने है । ऐसे भविष्य सभी धर्मों के अन्यों में लिखे गये हैं। इनस कोई सर्वज्ञ नो क्या, अच्छा पंडित भी साबित नहीं होता। भविष्य की कुछ सामान्य बातें भी हैं परन्तु वे सामान्य बुद्धि से कही जा सकती हैं । जैसे--एक दिन प्रलय होगा, आगे लोम निम्न श्रेणी के होते जाँयगे आदि । ऐसी बातें प्रायः सभी धर्मों में कही गई हैं । प्रलय की बात लीजिये-साधारण लोग भी समझते हैं कि.जो चीज कभी बनती है वह कभी नष्ट भी होती है; यह जगत् एक दिन भगवानने बनाया या प्राकृतिक रूप में पैदा हुआ तो इस का एक दिन नाश भी अवश्य होना चाहिये। बस, इससे लोग प्रलय मानने लगे । परन्तु जैनदर्शन ईश्वर को नहीं मानता इसलिये उसकी दृष्टि में सृष्टि अनादि है, इसीलिये उसका अन्त भी नहीं माना जा सकता, तब प्रलय कैसा ? लेकिन प्रलय की बहु प्रचलित मान्यता का समन्वय तो करना चाहिये, इसलिये एक मध्यममार्ग निकाला गया और कहा गया कि जगत् का प्रलय तो असम्भव है किन्तु प्रलय की बात बिलकुल मिथ्या भी नहीं है, भविष्य में खंडप्रलय होगा जो कि भरतक्षेत्र के आर्यक्षेत्र में ही रहेगा। मनुष्य का यह स्वभाव है कि उसकी बात को बिलकुल काट दो या किसी बात का उत्तर बिलकुल नास्तिकता से दो तो वह विश्वास नहीं करता; किन्तु उसकी बातका समन्वय करते हुए उत्तर दो या उसकी बातका कुछ ऐसा मूल बतलादो जिसका बढ़ा हुआ रूप उसकी वर्तमान मान्यता हो तो वह विश्वास कर लेता है । जैनियों का इतिहास भूगोल आदि का विषय मनोविज्ञान की इसी भूमिका पर स्थिर है । इससे जैन शास्त्रकारों की चतुरता और मनुष्य प्रकृतिज्ञता साबित होती है, न कि सर्वज्ञता ।
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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