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________________ चौथा अध्याय उत्तर-अनंत पदार्थों की कल्पनाके लिये अनंतकाल चाहिये इस प्रकार से कभी कोई सर्वज्ञ न होगा। दूसरा दोष यह है कि वह प्रत्यक्षज्ञानी न कहलायगा । तीसरी और सबसे मुख्य बात यह है कि अज्ञात वस्तुकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते । अनेक ज्ञात वस्तुओं को हम कल्पना द्वारा मिला सकते हैं परन्तु अज्ञात वस्तुकी कल्पना नहीं कर सकते। उदाहरणार्थ गधे के सींग की कल्पना लाजिये । यद्यपि हमने गधेका सींग नहीं देखा किन्तु गधा और सींग जरूर देखा है जिसने गधा नहीं देखा और सींग नहीं देखा वह गधे के सींग की कल्पना नहीं कर सकता। केवली अगर अनंत पदार्थों की कल्पना करें तो उन्हें उनके मूलभूत अनंत पदार्थों को जानना पड़ेगा। तब उस पर उनकी कल्पना चलेगी। इधर कल्पना सत्य है कि असत्य, इसका निर्णय प्रत्यक्ष के बिना ही नहीं सकता और केवली जिसे कल्पना से जानत हैं उसे प्रत्यक्ष करने वाला दुसरा महाकेवली कहाँ से आयगा? इसलिये कल्पना से सर्वज्ञन्य मानना अनुचित है । इस प्रकार भूतभविष्य पर्यायों का प्रत्यक्ष कोई नहीं कर सकता, यह ब.त सिद्ध हुई । इसलिये त्रैकालिक समस्त द्रव्यपर्यायों का प्रत्यक्षज्ञान केवलज्ञान है, यह बात ठीक नहीं है। अनेक विशेष अनंत पदार्थों के युगपत् प्रत्यक्ष में तीसरी बाधा यह है कि अनेक विशेषों का युगपत् प्रत्यक्ष नहीं हो सकता। एक समय में हम एक ही पदार्थ को जान सकते हैं । जब बहुत से पदार्थों का
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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