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________________ चौथा अध्याय केवल शाब्दिक कल्पना ही नहीं हैं परन्तु वस्तुके धर्म के ऊपर अवलम्बित हैं, इसलिये सप्तभंगी को समझते समय हमें इस बात को खयाल रखना चाहिये कि उसके प्रत्येक भंग का स्वरूप वस्तुके धर्म के साथ सम्बद्ध हो। वे सात भंग निम्नलिखित हैं--- [१] अस्ति ( है.) (२) नास्ति ( नहीं है ) (३) अस्ति नास्ति, (४) अवक्तव्य [ कहा नहीं जा सकता ] (५) अस्ति अवक्तव्य, (६) नास्ति अवक्तव्य, (७) अस्ति नास्ति अवक्तव्य । किसी भी प्रश्न का उत्तर देते समय इन सात में से किसी न किसी भंग का उपयोग हमें करना पड़ता है। अगर किसी . मरणासन्न रोगी के विषय में पूछा जाय कि उसके क्या हालचाल हैं तो इसके उत्तर में वैद्य निम्नलिखित सात उत्तरों में से कोई एक उरार देगा। १--अच्छी तबियत है [ अस्ति ] २--तबियत अच्छी नहीं है [ नास्ति ] ३-कलसे तो अच्छी है [ अस्ति ] फिर भी ऐसी अच्छी नहीं है कि कुछ आशा की जा सके [ नास्ति ] ४--अच्छी है कि खराब, कुछ कह नहीं सकते ( अवक्तव्य) ५-कल से तो अच्छी है फिर भी कह नहीं सकते कि क्या हो । ६--कल से अच्छी तो नहीं है, फिर भी कह नहीं सकते कि क्या हो [ नास्ति अवक्तव्य ] ..
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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