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________________ ३६२ पाँचयाँ अध्याय को कोई इतिहास समझ कर बैठ जाय या धोखा खाय . तो बेचारा आचार्य क्या करे ? कवि तो काव्य का विधाता होता है, उसे मनमानी सृष्टि करने का अधिकार है। जो उसके इस. अधिकार को नहीं समझते और ठोक पीटकर उसे इतिहास-निर्माता की कठोर कुर्सीपर बिठाते हैं, वे कविसे कुछ काम नहीं ले सकते; वे अच्छी' तरह धोखा खाते हैं। . ' ये कवि कथाकार इतिहास की कितनी अवहेलना करते हैं, इस पर अगर विस्तार से लिखा जाय तो एक पोथा बन जाय । सब सम्प्रदायों के कथा-साहित्य की अगर आलोचना की जाय तो यह कार्य भी एक समर्थ विद्वान की आजीवन तपस्या माँगता है । यहां न तो इतना समय है, न इतना स्थान । यहां तो सिर्फ दिशानिर्देश किया गया है । स्पष्टता के लिये एक उदाहरण और दिया जाता है। . आराधना-कथा-कोष में ७३ वी कया चाणिक्यकी है। चाणिक्य ब्राह्मण था, उसने नन्द का नाश किया था, इसके लिये नन्दके देश मन्त्रीने उसे निमन्त्रित कर भोजमें अपमानित किया था, आदि कथा प्रसिद्ध है । आराधनाकथाकोषमें चाणिक्य का चित्रण इसी तरह है जिससे मालूम होता है कि यह वही प्रसिद्ध चाणिक्य है, न कि कोई दूसरा चाणिक्य । कथाकोष में यह कहानी ज्यों की यों है, परन्तु पीछे से चाणिक्य महाशय जैनमुनि हो गये हैं, उनके पांचसौ शिष्य हुए हैं, उनके ऊपर चामिक्य के एक शत्रु [ सुबन्धु } ने उप
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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