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________________ मतभेद और आलोचना [ २६५ कुछ बातों का निर्णय कर लेना अच्छा है । पहिले उपकरणेन्द्रियका स्वरूप कहा जाता है। " इन्द्रियों के दो भेद हैं, मावेन्द्रिय और द्रव्येन्द्रिय । मावेन्द्रिय तो कर्मका क्षयोपशम और आत्मा का परिणाम है । द्रव्येन्द्रिय के दो भेट है-निवृत्ति और उपकरण । इन्द्रियाकार आत्मप्रदेशों की रचना आभ्यन्तर निवृत्ति है और इन्द्रियाकार पुद्गल--परमाणुओं की स्चना बाघ-निवृत्ति है । निवृत्ति का जो उपकार करे वह उपकरण है। जैसे आँखमें दालके बराबर जो छोटा गटा है वह निर्वृत्ति है उसके चारों तरफ़ जो काला गटा और सफेद गटा है वह अभ्यन्तर उपकरण है और पलक वगैरह बाह्य उपकरण हैं । इसी प्रकार अन्य इन्द्रियों में भी समझना चाहिये"। यह सर्वार्थसिद्धि का (१) कथन है जो कि दिगम्बर सम्प्रदाय में सर्वमान्य है | "अंगोपांग नामकर्म से बनाये हुए इन्द्रियद्वार, कर्म-विशेष से संस्कृत शरीर प्रदेश, निर्वृत्ति है और उसका अनुपघात या अनुग्रह करनेवाले उपकारी [२] हैं।' १ उत्सेधागुलासंख्येयभागप्रमितानां शुद्धानामात्मप्रदेशानां प्रतिनियतचक्षु रादीन्द्रियसंस्थाननावस्थितानां वृत्तिरभ्यन्तर निवृत्तिः । तेष्वा मप्रदेशष्विन्द्रियव्यपदेशभाशु यः प्रतिनियतसंस्थानो नामकमोदयापादितावस्थाविशेषः पुदगलंप्रचयः सा बामा निर्वृतिः । येन निवृत्तेरुपकारः क्रियते तदुपकरणम् । पूर्ववत्तदपि द्विविधम् । तत्राभ्यंतरं कृष्णशुक्लमण्डलम् । बाह्यभक्षिपत्रपक्ष्मद्वयादि । सर्वार्थसिद्धि २.-१७ । २ निर्वृत्तिरङ्गोपांगनामनिर्वर्तितानीन्द्रियद्वाराणि, कर्मविशेषसंस्कवा शरीरप्रदेशाः निर्माणनामाङ्गोपांगप्रत्यया मूलगुणनिर्वर्तनेत्यर्थः । उपकरणं बाबमाभ्यंतरं च निर्वर्तितस्यानुपघातानुप्रहाभ्यामुपकारीति.। उ० तत्त्वार्थमान्य-२-१७
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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