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________________ २५४ ] पाँचवाँ अध्याय 1 । यहाँ एक बुद्धि के २६ उदाहरण दिये हैं, जो बहुत मनोरंजक हैं छोटासा उदाहरण दिया जाता है । एक पुरुष की दो विधत्रा स्त्रियों में पुत्र के विषय में झगड़ा हुआ । दोनों ही कहती थीं कि यह मेरा पुत्र है । न्यायाधीश ने आज्ञा दी कि पुत्र के दो टुकड़े किये जॉय और दोनों को एक एक टुकड़ा दिया जाय । जो नकली माता थी वह तो इस न्याय से संतुष्ट हो गई, परन्तु जो असली माता थी उसका प्रेम उमड़ पड़ा । वह बोली- यह मेरा पुत्र नहीं है, पूरा पुत्र दूसरी को दिया जाय । इस प्रकार असली माताका पता लगगया न्यायाधीशकी यहाँ औत्पत्तिकी बुद्धि है । श्रेणिक चरित्र आदि में अभयकुमारकी बुद्धि की जो उदाहरणमाला दी गई है, वह सब औत्पत्तिकी बुद्धि का उदाहरण है । विनय [१] अर्थात् शास्त्र या शिक्षण । शास्त्रीय ज्ञानसे जो बुद्धि का असाधारण विकास होता है और उस पर जो विशेष विचार होता है, वह वैनयिकी बुद्धि है । दो विद्यार्थियों को एकसा शिक्षण देने पर भी एक विद्या के रहस्य को अधिक समझता है, और दूसरा उतना नहीं समझता । यह वैनयिकी बुद्धि का अन्तर है । मंदन प्रतिपत्तिर्निबन्धनं भवति । अथ च बुद्धयन्तर!द्भेदेन प्रतिपत्यर्थ व्यपदेशान्तरं कर्तुमारब्धं तत्र व्यपदेशान्तरनिमित्तं अत्र न किमपि विनयादिकं विद्यते कलमेवमेव तथोत्पत्तिरिति सैव साक्षान्निर्दिष्टा । नन्दीतून टीका | पुव्वं अदिमस्तु अमवेदयत क्खणावेसुद्ध गहियत्था | अव्वाहमफलजोगा बुद्धी उत्पत्तिया नाम | नन्दी २६ | (१) भरनत्थरणसमत्या तिवगा सुत्तत्थगहियपेआला | उमओ लोग फलवई विषयसमुन्धा हव बुद्धी ।
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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