SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 242
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञान के भेद [२३३ प्रश्न-आगम में नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष का स्पष्ट उल्लेख है और नोइन्द्रिय का अर्थ तो मन ही होता है इसलिये मनोजन्य ज्ञान प्रत्यक्ष कहलाया । उत्तर-भले आदमी ! आगम के सूत्रका अर्थ न जान कर तू ऐसा कहता है । आगम में नोइंद्रिय शब्दका अर्थ मन नहीं है, किन्तु आत्मा है । नोइंद्रिय प्रत्यक्ष अर्थात् सिर्फ आत्मा से होनेवाला प्रत्यक्ष । अगर नोइंद्रिय का अर्थ आत्मा न किया जायगा तो निम्न लिखित आपत्तियाँ खड़ी होंगी। (क) अवधिज्ञान अपर्याप्त अवस्था में भी बतलाया गया है परन्तु अपर्याप्त अवस्था में मन नहीं होता अगर अवविज्ञान मानसिक होगा तो अपर्याप्त अवस्था में कैसे होगा ? (ख) सिद्धों के मन नहीं होता, इसलिये उनके भी प्रत्यक्ष ज्ञान का अभाव मानना पड़ेगा। (ग) मनोनिमित्तज्ञान मनोद्रव्य द्वारा ही होता है इसलिये परनिमित्त वाला होने से वह अनुमान की तरह परोक्ष ही कहलाया न कि प्रत्यक्ष । (घ) मनोजन्य ज्ञान अगर प्रत्यक्ष होगा तो वह मतिश्रुत में शामिल न होगा क्योंकि मतिश्रुत परोक्ष हैं । तब मतिज्ञानके २८ भेद कैसे होगे ! [ मन के चार भेद निकल जाने से चौबीस ही होंगे। यहाँ पर नोइंद्रिय का जो आत्मा अर्थ किया गया है वह जबर्दस्ती की खींचातानी है । वास्तव में नोइंद्रिय का अर्थ मन
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy