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________________ केवली के अन्य ज्ञान [ १३३ कर्मका उदय बतलाने के लिये उत्तर-- वेदनीय परिषहों के कहने की क्या ज़रूरत है ? जब परिषहें होती तब क्या परित्रों का अभाव बतलाकर कर्मका बताया जा सकता ? दसवें गुणस्थान में चारित्रमोह का उदय तो है परन्तु वहाँ चारित्रमोह के उदय से होनेवाली सात परिषदों का अभाव बतलाया गया है। अगर कहा जाय कि दशवें गुणस्थान में चारित्र मोह का उदय ऐसा नहीं है कि परीह पैदा कर सके तो . 1. यह भी कहा जा सकता था कि तेरहवें गुणस्थान में वेदनीम का ऐसा उदय नहीं हैं जो परीषह पैदा कर सके, इससे साफ़ मालूम होता है कि कर्मका उदय होने से ही परिषहों का सद्भाव नहीं बताया जाता किन्तु जब वे वास्तव में होतीं हैं तभी उनका सद्भाव बताया जाता है । तेरहवें गुणस्थान (केवली ) में वे परिषहें वास्तव में हैं इसलिये वे वहाँ बताई गई हैं । 1 वहाँ नहीं उदय नहीं प्रश्न- जिनेन्द्र के ग्यारह परिषहों का सद्भाव नहीं बताया है किन्तु अभाव बताया है । तत्वार्थसूत्र के 'एकादशजिने' सूत्र में 'न सन्ति' यह अध्याहार है । अथवा 'एकादश' की सन्धि इस प्रकार है एक + अ+दश; 'अ' का अर्थ 'नहीं' है इसलिये एकादस का अर्थ 'एकदश' नहीं अर्थात् 'ग्यारह नहीं' ऐसा हुवा | उत्तर- ये दोनों ही कल्पनाएँ अनुचित हैं क्योंकि इस प्रकार मनमाना अध्याहार किया जाने लगे तो संसार के सब शास्त्र उलट जाँयँगे | 'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः' इस सूत्र में भी 'नास्ति' का अध्याहार करके सम्यग्दर्शनादि मोक्षमार्ग नहीं है, ऐसा
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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