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________________ केवली और मन [ १०७ मनसे हाँ केवली से प्रश्न पूछते हैं तो केवलज्ञानी भी मनसे ही उसका उत्तर देते हैं। इससे केवली के विचारों का प्रभाव केवली के द्रव्यमन पर पड़ता है, उस द्रव्यमन को मन:पर्ययज्ञानी अपने अवधि से देखते हैं और अपने प्रश्नका उत्तर समझ लेते हैं । इससे यह बात बिलकुल साफ़ है कि केवली का मन अजागलस्तनकी तरह निरर्थक नहीं है किन्तु वह विचार का साधन है । यदि केवली के त्रिकाल - त्रिलोक का युगपत् साक्षात्कार होता तो केवली का मन किसी अमुक व्यक्ति के उत्तर देने में कैसे लगता ? प्रश्न- श्वेताम्बर साहित्य के आवार से तो अवश्य ही मनोयोग का वर्णन केवली के प्रचलित स्वरूप में बाधा डालता है परन्तु दिगम्बर शस्त्रों पर यह आक्षेप नहीं किया जा सकता । गोम्मटसार की जिन गाथाओं को आपने उद्धृत किया है उनमें मनोयोग उपचरित नहीं कहा गया है किन्तु मनउपयोग उपचारित कहा गया है । २२८ वीं. गाथा का ही उपचार से सम्बन्ध है । २२९ वीं गाथा में शुद्ध मनोयोग ही बतलाया गया हैं इस वर्णन से उपचार का कोई सम्बन्ध नहीं । उत्तर - सर्वज्ञता की प्रचलित मान्यता जैमी दिगम्बरों को प्यारी है वैसी वेताम्बरों को, दोनों ने ही उसकी सिद्धि के लिये पूरा परिश्रम किया है फिर भी अगर ऐतिहासिक और मनोवैज्ञानिक सामग्री वेताम्बर साहित्य में रह गई है और दिगम्बर साहित्य में नहीं है, तो इसका यही अर्थ निकलता है कि श्वेताम्बर साहित्य की या मूल साहित्य की उस कमजोरी को समझकर दिगम्बरों ने उस पर काफी लीपापोती की है जिससे दर्शक का ध्यान उस कमजोरी पर टिक
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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