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________________ ९२ ] चौथा अध्याय विशेष प्रतिभास उचित नहीं कहा जा सकता । "सत्र पदार्थ ह" इस प्रकार का प्रतिभास एक साथ हो सकता है किन्तु अगर आप सब पदार्थों की विशेषता को एक साथ जानना चाहें तो यह असम्भव है । यह बात एक उदाहरण से स्पष्ट होगी । एक मनुष्य एक समय में एक फल को देखता है । अब यदि वह एक साथ दो फलों को देखेगा तो दोनों फलों की त्रिशेपताएँ उसके विषय के बाहर हो जायँगी, और उन दोनों फलों में जो समान तत्त्व है सिर्फ वही उसका विषय रह जायगा (१) । इसी (१) विशेषावश्यक की निम्नलिखित गाथाओं में इसी बातका उल्लेख हैंसमयमगग्गहणं जइ सीओ सिणदुगम्मिको दोसो | hra भणियं दोसो उवयोगदुगे वियारोयं ॥ २४३९ ॥ समयमणेगग्गहणे एगाणेगोव ओगभेओ को । ... सामण्णमेगजोगो खंधावारोवओगाव्व || २४४० ॥ खंधारोऽयं सामण्णमेत्तमेगोवओगया समयं । पइत्धुविभागो पुण जो सोऽणेगोवयोगत्ति || २४४१ ॥ ते चिय न संति समयं सामण्णाणगगहणमाविरुद्धं । एगमणेगं पितयं तम्हा सामण्णभावेणं || २४४२ ॥ उसिणेयं सीयेयं न विभागो नोवओगदुगमित्थं । हो समं दुगगहण सामण्णं वेयणामेति || २४४३ ॥ भावार्थ – एक समय में शीत और उष्ण का ज्ञान होजाय तो क्या दोष ? उत्तर - इसमें दोष कौन कहता है हमारा कहना तो यह है कि दो उपयोग एक साथ न होंगे किन्तु दोनों का एक सामान्य उपयोग ही होगा । जैसे सेना शब्द से होता है । सेना यह सामान्य उपयोग है किन्तु रथ अश्व पदाति आदि विशेषोपयोग हैं वे अनेक हैं । वे अनेकोपयोग एक साथ नहीं हो सकते, हाँ ! उनमें जां समानता है वह हम एक साथ ग्रहण कर सकते हैं । जो एक साथ उष्णवेदना और शतिवेदना का अनुभव करता है वह शांत और उष्ण के विभाग
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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