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________________ जैनधर्म-मीमांसा और केवलियोंके समयमें मूर्ति अनावश्यक है इसलिये उनके समयमें मूर्ति नहीं बनाई जा सकती, इस तर्कमें जैन-शास्त्रोंकी और ऐतिहासिक सचाइयोंकी पूरी हत्या की गई है। सिक्कोंपर राजाओंकी ऐसी अनेक मूर्तियाँ मिलती हैं जिन्हें उन राजाओंने अपने जीवनमें बनवाया था। जैन-शास्त्रोंके अनुसार ऋषभदेवके जीवन-कालमें ही भरतने मूर्तियों और मंदिरोंका निर्माण किया था। व्यक्ति तो अमुक समय और जगहके लिये होता है परन्तु मूर्तिको तो हम हर-समय अपने पास रख सकते हैं, इसलिये व्यक्तिके जीवनमें उसकी मूर्तियाँ होना अनावश्यक नहीं है । फिर अविद्यमान व्यक्तिकी मूर्ति तो और भी आवश्यक है। इसलिये यह निश्चित रूपमें कहा जा सकता है कि खारवेलके शिलालेखवाली मूर्ति म० महावीरसे पोछेकी है। इससे ऋषभदेवके जैनतीर्थंकर होनेकी मान्यता महावीरसे प्राचीन सिद्ध नहीं हो सकती। प्रश्न ४-ऋषभदेव यदि काल्पनिक व्यक्ति होते और उनकी कल्पनाका समय महावीरके बादका होता तब तो इनका नाम बुद्धावतारके बाद आना चाहिये था। उत्तर-यहाँ यह प्रश्न ही नहीं है कि ऋषभदेव काल्पनिक हैं या अकाल्पनिक । वे ऐतिहासिक व्यक्ति ही क्यों न सिद्ध हो जावें, फिर भी वे · जैन-तीर्थंकर ' थे यह बात काल्पनिक ही बनी रहेगी। दूसरी बात यह है कि कल्पनाका समय और कल्पनाके विषयका समय ये दो जुदी जुदी बातें हैं । मैं आज एक लाख वर्ष पहले किसी व्यक्तिकी कल्पना करूँ और उसका चरित्र लिखू तो राम-कृष्ण आदिके पहले उसका समय कहा जायगा परन्तु कल्पनाका समय आजका ही होगा।
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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